New Criminal Laws: देश में तीन नए क्रिमिनल लॉ एक जुलाई से लागू होने जा रहे हैं. ये कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) हैं, जो इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) और इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 (IEA) की जगह लेंगे. नए आपराधिक कानूनों में त्वरित सुनवाई, न्याय, मानवाधिकार संरक्षण और जांच में उन्नत टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है. मौजूदा मामले पुराने कानूनों के तहत ही जारी रहेंगे. नए कानूनों से क्या बदलाव आएगा. आइए जानते हैं. गौरतलब है कि इन कानूनों को संसद ने 21 दिसंबर, 2023 को मंजूरी दी थी और 25 दिसंबर, 2023 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली थी.
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस)
बीएनएस 163 साल पुराने आईपीसी की जगह लेगा. इससे दंड कानून में अहम बदलाव आएंगे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार–
– BNS की धारा 4 में सजा के रूप में कम्युनिटी सर्विस कराए जाने की बात है. 5,000 रुपये से कम की चोरी के लिए सामुदायिक सेवा की सजा है.
– यौन अपराधों के लिए शख्स कदम उठाए गए हैं. कानून में उन लोगों के लिए 10 साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है, जो शादी का वादा करके धोखे से यौन संबंध बनाते हैं. नया कानून धोखे से निपटने के लिए भी है, जिसमें अपनी पहचान छिपाकर नौकरी, पदोन्नति या शादी से जुड़े झूठे वादे शामिल हैं.
संगठित अपराध के लिए कड़ी सजा
– संगठित अपराध (Organised Crime) अब व्यापक जांच के दायर में होंगे. किडनैपिंग, रॉबरी, वाहन चोरी, जबरन वसूली, भूमि हड़पना, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध और मानव, ड्रग्स, हथियार या अवैध सामान या सेवाओं की तस्करी शामिल है.
– वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव तस्करी, संगठित अपराध में लिप्त लोगों या समूहों को कड़ी सजा दिए जाने के प्रावधान हैं. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भौतिक लाभ के लिए हिंसा, धमकी, डराने-धमकाने, जबरदस्ती या अन्य गैरकानूनी तरीकों से अंजाम दिए गए इन अपराधों के लिए कड़ी सजा दी जाएगी.
– नेशनल सिक्योरिटी को खतरा पहुंचाने वाले कृत्यों के लिए बीएनएस ने आतंकवादी कृत्य को ऐसी किसी भी गतिविधि के रूप में परिभाषित किया है, जो लोगों में आतंक फैलाने के इरादे से भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता या आर्थिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाती है.
– आतंकवाद को अब बीएनएस की धारा 113 (1) के तहत परिभाषित और दंडनीय बनाया गया है. वहीं, देशद्रोह की जगह धारा 152 ने ले ली है, जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए खतरों पर केंद्रित है.
– आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, जबकि भीख मांगने को शोषण माना गया है.
मॉब लिचिंग में हत्या होने पर मुत्यदंड
– यह कानून मॉब लिचिंग जैसे गंभीर मुद्दे से भी निपटता है. इसमें कहा गया है, ‘जब 5 या उससे अधिक लोगों का समूह मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार पर हत्या करता है, तो ऐसे ग्रुप के प्रत्येक सदस्य को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी देना होगा.’
– मृत्युदंड को केवल आजीवन कारावास में बदला जा सकता है, जिसमें आजीवन कारावास की सजा सात साल के भीतर माफ की जा सकती है.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
1973 के कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) लेगा. इस नए कानून में कई जरूरी बदलावों का शामिल किया गया. इसमें बड़ा बदलाव अंडर ट्रायल कैदियों को लेकर है.
– नया कानून पहली बार क्राइम करने वालों (आजीवान कारावास या कई आरोपों वाले मामलो को छोड़कर) को उनकी अधिकतम सजा का एक तिहाई हिस्सा पूरा करने के बाद जमानत पाने की इजाजत देता है.
– अब कम से कम 7 साल की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच अनिवार्य है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि फोरेंसिक एक्सपर्ट क्राइम स्पॉट पर एविडेंट कलेक्ट करें और रिकॉर्ड करें. अगर किसी राज्य में फोरेंसिक सुविधा नहीं है, तो उसे दूसरे राज्य में सुविधा का उपयोग करना होगा.
BNSS में प्रस्तावित प्रमुख बदलाव
– रेप विक्टिम की जांच करने वाले चिकित्सकों को 7 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट इन्वेस्टिंग ऑफिसर को जमा करनी होगी.
– बहस पूरी होने के 30 दिनों के भीतर निर्णय सुनाया जाना चाहिए, जिसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है.
– पीड़ितों को 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति की जानकारी दी जानी चाहिए.
– सेशंस कोर्ट को ऐसे आरोपों पर पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय करना आवश्यक है.
– पुराना कानून सीआरपीसी राज्य सरकारों को 10 लाख से अधिक आबादी वाले किसी भी शहर या कस्बे को महानगरीय क्षेत्र (Metropolitan Area) के रूप में नामित करने का अधिकार देता है, जिससे मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की स्थापना हो सके. हालांकि नए कानून में इस प्रावधान को हटा दिया गया है.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए)
इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) लेगा. इसमें इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस के संबंध में अहम बदलाव किए गए हैं. गंभीर अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच को अनिवार्य किया गया है.