दहेज में जहरीले सांप देने की इस प्रथा का चलन आज भी हमारे देश के छत्तीसगढ़ राज्य में है. छत्तीसगढ़ की संवरा जनजाति में आज भी पैसों और गाड़ी के बजाए दहेज में जहरीले सांपों को दिया जाता है.
हम बात कर रहे हैं कोरबा जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित मकुनपुर गांव की, जहां पिछले 40 सालों से संवरा जनजाति के लोग निवास करते हैं. संवरा जनजाति का जहरीले सांपों से गहरा नाता है. सांप ही इस जनजाति के जीविकोपार्जन का एक महत्वपूर्ण जरिया हैं. इनके छोटे-छोटे झुग्गियों को देखकर समझा जा सकता है कि इनकी जीवनशैली कैसी होगी? इस जनजाति के लोग रोजगार के लिए सिर्फ सांपों पर ही आश्रित हैं.जगह-जगह जाकर सांपों को दिखाना ही संवरा जनजाति का मुख्य पेशा है. इसी को यह अपना रोजगार मानते हैं.
सांप दिखाकर करते हैं रोजी-रोटी का जुगाड़
दरअसल, सांप दिखाकर घर के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करना ही इनका काम है. भले ही ये लोग चार पैसे कमाने के लिए कोई और भी काम करें, लेकिन सांप लेकर घूमना और भीख मांगना इनकी पुश्तैनी परंपरा है, जिसे इनको मानना ही होगा. आप सुनकर हैरान हो जाएंगे कि इस समुदाय में जब भी विवाह होता है तो लड़की पक्ष द्वारा दहेज के तौर पर जहरीले सांप दिए जाते हैं. सांप देने का मकसद ही यही है कि सांप दिखाकर यह लोग अपनी जीविका चला सकें.
संवरा जनजाति के पास आज भी पक्का घर नहीं है. जनजाति के लोग झुग्गी-झोपड़ी डालकर किसी तरह से गुजर-बसर कर रहे हैं.
सालों से सांप पकड़ने का काम कर रहे
वैसे तो छत्तीसगढ़ में अनेकों जाति-जनजाति के लोग निवास करते हैं. उनके जीवन स्तर में सुधार करने के लिए सरकार करोड़ों खर्च भी कर रही है, मगर इस संवरा जनजाति के लोग आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं. इस जगह पर करीब 20 परिवार निवासरत है, लेकिन इन्हें सरकारी सुविधाएं नहीं मिल पाई हैं, न ही इन के पास रोजगार है और न ही सुरक्षित आशियाना. अगर सरकारी योजनाओं का इन्हें सही लाभ मिलता तो निश्चित तौर पर इनके जीवन स्तर में सुधार होगा.
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