उत्‍तर प्रदेश में जीत का असर, तीन साल बाद सदन में एकजुट नजर आया विपक्ष

रायपुर 24 मार्च (वेदांत समाचार)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का असर छत्तीसगढ़ में भी नजर आया। विधानसभा के बजट सत्र में भाजपा विधायकों ने सरकार को जमकर घेरा। मंत्रियों के विभाग के सवाल-जवाब में विपक्षी विधायकों ने आक्रामक तेवर दिखाए। विपक्ष के उठाए मुद्दों पर आइएफएस अधिकारियों से लेकर जिला पंचायत के सीईओ तक पर कार्रवाई करने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा। प्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद हुए अब तक के विधानसभा सत्र में पहली बार भाजपा विधायक एकजुट नजर आए। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक से लेकर विधायक बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, नारायण चंदेल, शिवरतन शर्मा और सौरभ सिंह ने प्रश्नकाल से लेकर ध्यानाकर्षण और स्थगन के माध्यम से जनहित के मुद्दों पर चर्चा की।

भाजपा विधायकों ने प्रदेश में पलायन से लेकर रेडी-टू-ईट का मुद्दा, धान खरीदी, 25 हजार बच्चों सहित एक हजार माताओं की असमय मौत का मामला जोर-शोर से उठाया। कांग्रेस सरकार ने केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए जीएसटी बकाया को सबसे बड़ा हथियार बनाया है। सत्र के दौरान भाजपा विधायकों ने बताया कि प्रदेश की एक लाख 14 हजार करोड़ की देनदारी है, जो हिमाचल प्रदेश, उतराखंड़, दिल्ली और गोवा जैसे राज्यों से अधिक है। कांग्रेस के चुनावी वादों को लेकर न सिर्फ जमकर सवाल लगाए गए, बल्कि तीन साल पूरे होने के बाद भी अधूरे वादों पर सरकार का ध्यान खींचा। कांग्रेस दावा करती रही कि प्रदेश में पांच लाख लोगों को नौकरी दी गई लेकिन विधानसभा में जबाव से पता चला कि करीब 19 हजार युवाओं को ही नौकरी दी गई।

दरअसल, कांग्रेस युवाओं को अपने पाले में करने के लिए रोजगार को मुद्दा बना रही है। विपक्ष ने आंकड़ों के साथ रोजगार की पोल खोल दी। सूखा राशन बांटने में घोटाला और राजधानी के इंडोर स्टेडियम में बने कोविड केयर सेंटर में भ्रष्टाचार को भाजपा विधायकों ने न सिर्फ उठाया, बल्कि सदन में जांच की घोषणा कराने में भी सफल रहे।राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो पिछले सत्रों में जो भाजपा विधायक सवाल उठाता था, वही आखिरी तक मंत्रियों से सवाल करता था। लेकिन इस बजट सत्र में पूरा माहौल बदला-बदला नजर आया। एक सवाल पर तीन से चार विधायक पूरक सवाल कर रहे थे। यही नहीं, सभी विधायक पूरी तैयारी के साथ सवाल पूछकर मंत्रियों को फंसाने में कामयाब भी हो रहे थे। मंत्री अमरजीत भगत, प्रेमसाय सिंह टेकाम व ताम्रध्वज साहू कई मौकों पर तथ्यों के साथ जवाब नहीं दे पा रहे थे।

सत्तापक्ष से अकबर-चौबे की जोड़ी ने संभाला मोर्चासत्तापक्ष की तरफ से मंत्री मोहम्मद अकबर और रविंद्र चौबे की जोड़ी ने मोर्चा संभाले रखा। पहली बार मंत्रियों की अनुपस्थिति में मंत्री उमेश पटेल ने भी दूसरे मंत्री के विभाग का जवाब दिया। हाउसिंग बोर्ड की जमीन के मामले में एक विधायक के परिवार का नाम आना हो या फिर मंत्री कवासी लखमा के विभाग से जुड़े सवाल हों, मंत्री अकबर ने पूरी तैयारी के साथ जवाब देकर विपक्षी दलों को संतुष्ट करने की कोशिश की। कांग्रेस विधायक संतराम नेताम, दलेश्वर साहू और छन्‍नी साहू ने अपनी ही सरकार के मंत्रियों से कठिन सवाल पूछकर अड़चन पैदा कर दी थी। पहली बार के विधायक आशीष छाबड़ा न सिर्फ अपने क्षेत्र के मुद्दे उठाए, बल्कि भ्रष्टाचार के मामले में कार्रवाई करवाने में भी सफल रहे।

सिंहदेव की गैरमौजूदगी पर चले शब्दों के तीरपूरे बजट सत्र में मंत्री टीएस सिंहदेव की चार दिन की उपस्थिति रही। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आने से पहले वे छुट्टी पर चले गए। जब लौटे तो सिर्फ उनके विभाग और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विभाग पर चर्चा बाकी थी। सिंहदेव की गैरमौजूदगी को लेकर कई बार विपक्षी दलों ने ढाई-ढाई साल के फार्मूले की याद दिलाई। यही नहीं, सिंहदेव जब अपने विभाग के बजट पर चर्चा कर रहे थे, उस समय एक-दो विधायकों को छोड़कर सभी मंत्री और विधायक सीट पर मौजूद नहीं थे। इसे भी विपक्षी दलों ने सिंहदेव के बहिष्कार से जोड़कर पेश करने की कोशिश की।