संविधान दिवस के अवसर पर विशेष लेखःभारतीय संविधान सामाजिक न्याय और समानता की नींव है: महेंद्र सिंह मरपच्ची

एमसीबी, 26 नवम्बर 2024 I संविधान दिवस जो 26 नवम्बरको मनाया जाता है, आज भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन हमें अपने संविधान की भावना और इसके द्वारा दिए गए अधिकारों, कर्तव्यों और दिशा-निर्देशों को याद करने का अवसर प्रदान करता है। भारतीय संविधान न केवल हमारे देश की कानूनी संरचना को आकार देता है, बल्कि यह हमारे सामाजिक, राजनीतिक और सांस्किक जीवन को भी दिशा प्रदान करता है। 26  नवम्बर1949 को संविधान को अंगीकृत किया गया था, और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। इस दिन को एक ऐतिहासिक घटना के रूप में याद किया जाता है, क्योंकि यही वह दिन था जब भारत को एक प्रजातांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए एक मजबूत और न्यायपूर्ण कानूनी ढांचा मिला।

संविधान का इतिहास और निर्माण


भारतीय संविधान का निर्माण स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात हुआ। 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, यह जरूरी था कि एक ऐसा संविधान तैयार किया जाए जो न केवल लोकतंत्र की नींव रखे, बल्कि देश की विविधता और एकता को भी कायम रखे। भारतीय संविधान का निर्माण कार्य 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा के गठन के साथ शुरू हुआ। इस सभा में भारतीय राजनीति, समाज, और संस्कृति के विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रतिनिधि शामिल थे। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे, और डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। डॉ. अंबेडकर ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्हें “भारतीय संविधान के शिल्पकार” के रूप में जाना जाता है। संविधान को तैयार करने में कुल 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे। यह एक कठिन और पेचीदा कार्य था क्योंकि भारतीय समाज में विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधताएँ थीं।


भारतीय संविधान के निर्माण का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में न्याय, समानता और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना था। इसे इस प्रकार तैयार किया गया कि यह सभी नागरिकों को समान अवसर, अधिकार और कर्तव्य प्रदान करे। संविधान में मौलिक अधिकार, राज्य के नीति-निर्देशक तत्व और मौलिक कर्तव्य जैसे महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं, जो आज भी भारतीय समाज के विकास की दिशा तय कर रहे हैं। संविधान की सबसे बड़ी विशेषता इसकी लचीलापन और कठोरता का मिश्रण है। इसका मतलब यह है कि यह समय के साथ बदलने और समायोजित होने की क्षमता रखता है। भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया ऐसी है कि इसे केवल विधायी प्रक्रिया के माध्यम से बदला जा सकता है, लेकिन इसके लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। इसी लचीलापन के कारण, यह समय के साथ बदलते हुए समाज के नए प्रश्नों और समस्याओं का समाधान कर सकता है। संविधान का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू संघीयता है, जिसका अर्थ है केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का उचित विभाजन। भारतीय संविधान का यह संघीय ढाँचा भारत को एकता और अखंडता प्रदान करता है, और राज्य सरकारों को भी अपनी नीतियां बनाने और लागू करने की स्वतंत्रता देता है।


संविधान में है समाहित सिद्धांत


भारतीय संविधान में कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत समाहित किए गए हैं, जो देश की शासन व्यवस्था और नागरिकों के अधिकारों को दिशा देते हैं। इन सिद्धांतों में प्रमुख हैंरू जिसमें संप्रभुता, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय जैसे अधिकार यहां की आम जनता को संवैधानिक अधिकार देता है। इसके साथ ही भारतीय संविधान की महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी है जैसे:- ‘‘मौलिक अधिकार‘‘ भारतीय संविधान का भाग

 III मौलिक अधिकारों से संबंधित है, जो प्रत्येक भारतीय नागरिक को स्वतंत्रता, समानता और धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसमें स्वतंत्रता के अधिकार, समानता के अधिकार, शोषण से मुक्ति, धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, और संवैधानिक उपायों से सुरक्षा शामिल हैं। “राज्य के नीति-निर्देशक तत्व” यह भाग संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक है और राज्य को उन दिशा-निर्देशों को पालन करने के लिए बाध्य करता है, जो सामाजिक और आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं। ‘‘मौलिक कर्तव्य‘‘ संविधान के भाग 

 IV&A में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। यह कर्तव्य नागरिकों को अपने देश और समाज के प्रति जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके साथ ही ‘‘संविधान संशोधन‘‘ भारतीय संविधान में समय-समय पर संशोधन करने का प्रावधान है, ताकि यह बदलते हुए समाज और देश की जरूरतों के साथ सामंजस्य बनाए रख सके।


संविधान के निर्माण में आए संघर्ष और चुनौतियाँ


संविधान निर्माण के दौरान कई संघर्ष और चुनौतियाँ सामने आईं। सबसे बड़ी चुनौती थी भारत के विभिन्न धर्मों, जातियों और भाषाओं की विविधता को ध्यान में रखते हुए एक संविधान तैयार करना। भारत के विभाजन के बाद संविधान सभा में कई धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक मतभेद थे। संविधान सभा के सदस्य विभिन्न क्षेत्रों से आए थे और उनकी अपनी-अपनी चिंताएँ थीं। लेकिन, इन सभी मतभेदों के बावजूद, संविधान सभा ने सहमति और समझौते के आधार पर संविधान तैयार किया। इसके अलावा, संविधान में सामूहिक कल्याण, सामाजिक न्याय और समानता की अवधारणा को प्राथमिकता दी गई, जो उस समय एक नई सोच थी। संविधान में श्रमिकों, महिलाओं और वंचित वर्गों के अधिकारों को सुनिश्चित किया गया, जो भारतीय समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता थी।


संविधान के लागू होने के बाद के प्रभाव


संविधान का 26 जनवरी 1950 को लागू होना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नया अध्याय था। इसके लागू होने के बाद से भारत में राजनीतिक स्थिरता, सामाजिक न्याय और नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हुई। भारतीय संविधान ने भारत को एक सशक्त और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया, जहां हर नागरिक को समान अधिकार प्राप्त हैं। संविधान का प्रभाव केवल कानूनी दायरे तक सीमित नहीं था, बल्कि इसने समाज में एक नई चेतना भी जाग्रत की। यह नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और उन्हें अपनी जिम्मेदारियों को समझने की प्रेरणा देता है। भारतीय संविधान की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से समावेशी है और यह समाज के कमजोर और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए काम करता है।


संविधान दिवस का महत्व आज पहले से कहीं अधिक है। यह हमें संविधान के उद्देश्यों और इसके सिद्धांतों की याद दिलाता है और हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि हम अपने कर्तव्यों का पालन कितना कर रहे हैं। आज के समय में जब समाज में असमानताएँ और अन्याय बढ़ रहे हैं, संविधान के आदर्शों को समझना और उनका पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। हमें संविधान के सिद्धांतों के प्रति अपनी निष्ठा और प्रतिबद्धता को फिर से दोहराने का अवसर मिलता है। भारतीय संविधान एक अमूल्य धरोहर है जो हमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। इसका सम्मान करना और इसके आदर्शों के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करना ही इस दिन का असली उद्देश्य है।

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