मैं खाकी हूं.., IPS सुकीर्ति माधव मिश्रा की कविता एक बार फिर हुई वायरल, IAS ऑफिसर ने यूं की तारीफ

नई दिल्लीः बिहार के जमुई जिले के मलयपुर गांव से ताल्लुक रखनेवावले आईपीएस सुकीर्ति माधव मिश्रा की कविता ‘मैं खाकी हूं’ सोशल मीडिया पर फिर से वायरल हो रही है।

माधव मिश्रा को यह उम्मीद नहीं थी कि उनकी कविता को लोग इतनी पसंद करेंगे। आईएएस ऑफिसर अवनीश शरण ने मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त विश्वास नांगरे पाटील द्वारा पढ़ी गई इस कविता का ट्विटर पर वीडियो साझा किया है। उन्होंने इसे साझा करते हुए दिल की इमोजी के साथ लिखा कि जब भी पढ़ता या सुनता हूँ, दिल रोमांच से भर जाता है।

सुकीर्ति माधव मिश्रा ने भी अवनीश के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए आभार जताया है। सुकीर्ति ने धन्यवाद देते हु…

इसी ट्वीट पर जवाब देते हुए आईएएस अफसर शाह फैसल ने लिखा, खूबसूरती से लिखा गया और उतना ही शक्तिशाली रूप से सुनाया गया। मैं लंबे समय से इस शानदार कवि की तलाश कर रहा था और यह जानकर क्या आश्चर्य हुआ कि आप हैं। इस पर सुकीर्ति ने लिखा- सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।

2015 बैच के आईपीएस सुकीर्ति माधव मिश्रा मौजूदा समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एसपी सुरक्षा के पद पर तैनात हैं। यह कविता पीएम ने भी सुनी थी और काफी तारीफ की थी। जिसके बाद यह कविता और चर्चा में आ गई। सोशल मीडिया पर इसे खूब पसंद और शेयर किया जा रहा है।

गौरतलब है कि सुकीर्ति की कविता- मैं खाकी हूं कविता को नासिक के पुलिस कमिश्नर विश्वास नांगरे पाटिल और बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार भी अपनी आवाज दे चुके हैं।

यहां पढ़ें पूरी कविता..

मैं खाकी हूं।
दिन हूं रात हूं, सांझ वाली बाती हूं, मैं खाकी हूं।
आंधी में, तूफान में, होली में, रमजान में, देश के सम्मान में,
अडिग कर्तव्यों की, अविचल परिपाटी हूं, मैं खाकी हूं।
तैयार हूं मैं हमेशा ही, तेज धूप और बारिश, हंस के सह जाने को, सारे त्योहार सड़कों पे, भीड़ के साथ मनाने को, पत्थर और गोली भी खाने को, मैं बनी एक दूजी माटी हूं, मैं खाकी हूं।
विघ्न विकट सब सह कर भी, सुशोभित सज्जित भाती हूं,
मुस्काती हूं, इठलाती हूं, वर्दी का गौरव पाती हूं, मैं खाकी हूं।
तम में प्रकाश हूं, कठिन वक्त में आस हूं, हर वक्त मैं तुम्हारे पास हूं, बुलाओ, मैं दौड़ी चली आती है, मैं खाकी हूं।
भूख और थकान की वो बात ही क्या, कभी आहत हूं, कभी चोटिल हूं, और कभी तिरंगे में लिपटी, रोती सिसकती छाती हूं, मैं खाकी हूं।
शब्द कह पाया कुछ ही, आत्मकथा में बाकी हूं, मैं खाकी हूं।