जब रोना आए तो खुलकर रोएं, आंसू को रोकने से भी हो सकती हैं बीमारियां…

जब इंसान को किसी भी तरह की चोट लगती है, मन से दुखी होता है तो आंखों में आंसू आना आम होता है. हालांकि आम तौर पर लोग रोने (Crying) को कमजोरी की निशानी मानते हैं. यही वजह है कि कई बार उन आंसुओं को हम अंदर रोक लेते हैं और रोते नहीं हैं.  लेकिन क्या आप जानते हैं कि आंसुओं को रोक लेना हमारे लिए मुश्किल भी खड़ी कर सकता है. दरअसल आंसू आंखों को शुष्क होने से बचाते हैं और उसे साफ करने के साथ बैक्टीरिया फ्री बनाने में मदद करते हैं.

आंसू में 98 प्रतिशत पानी होता है और यह आंखों को लुब्रिकेट रखता है और इंफेक्शन से बचाता है. यहां हम आपको बताएंगे कि आंसू क्या होते हैं और आंसू क्यों बहते हैं. आयुर्वेद में रोने को लेकर कई खास बातें कही गई हैं. आयुर्वेद के अनुसार जब आपको रोना आए तो आंसुओं को बह जाने देना चाहिए. उसे रोकना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से शरीर पर उसका दुष्प्रभाव देखने को मिल सकता है.

सबसे पहले जानिए कितने प्रकार के होते हैं आंसू

आपको बता दें कि रिफ्लैक्‍स (Reflex) आंसू आंखों में तब आता है, जब कोई कचरा या धुंआ गया हो. दूसरा है बुनियादी (Basal )आंसू जिसमें 98 प्रतिशत पानी होता है और यह आंखों को लुब्रिकेट रखता है और इंफेक्शन से बचाता है. तीसरा होता है भावनात्मक (Emotional ) आंसू जो परेशानी आदि में हमारी आंखों से निकलते हैं.

आंसुओं के वेग को रोकना स्वास्थ्य के लिए क्यों हानिकारक है?

आयुर्वेदिक के अनुसार आंखों से निकलने वाले आंसू का कभी भी अवरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि रोने की जो प्रवृत्ति है उसको जब हम रोते हैं तो सर दर्द नाक की बीमारी आंख की बीमारी और हृदय रोग होने दे संभावना बढ़ जाती हैं. जब भी किसी कारण से रोना आए तो आंसुओं को बहने देना चाहिए. इससे दिल की बीमारियों का खतरा, डिप्रेशन आदि कम होता है.

इतना ही नहीं रोने से बॉडी में ऑक्सिटोसिन और इन्डॉर्फिन जैसे केमिकल्स रिलीज होते हैं. ये फील गुड कैमिकल्‍स हैं. तनाव से जब हम रोते हैं तो उससे शरीर में बना टौक्सिन धीरे धीरे आंसू के सहारे बाहर आने लगता है. यह आंसू कई तरह के गुड हार्मोन्‍स रिलीज  करते हैं जो शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए फायदेमंद होता है.