नगर सेना के 75 साल, आज भी हालत बदहाल…

देेश में नगर सेना विभाग का इतिहास आजादी से पहले का है, लेकिन आजादी के बाद शासक तो बदल गए, लेकिन नगर सेना के हालत पर किसी ने नजर नहीं डाली। वैसे इस विभाग की स्थापना 1946 में जब मुंबई प्रांत में हुए सांप्रदायिक दंगे में पुलिस के साथ मदद के लिए की गई थी। ये एक ऐसा संगठन था, जिसमें डॉक्टर, इंजीनियर से लेकर वो नौजवान शामिल थे जो अपने रोजमर्रा के अलावा समाज की बेहतरी के लिए स्वैच्छिक तौर पर काम करना चाहते थे। आजादी के बाद इस संगठन को विस्तार नहीं दिया जा सका। 1962 के चीन युद्ध में एक बार फिर पुलिस को मददगारों की जरूरत महसूस हुई और 6 दिसंबर 1962 को गृह रक्षक संगठन का पुनर्गठन किया गया। तभी से होमगार्ड महकमा अपना 6 दिसंबर को स्थापना दिवस मनाने लगा है।

लेकिन, छत्तीसगढ़ में नगर सेना महकमा सिर्फ अफसरों और नेताओं के घरों की रखवाली और पुलिस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहा है। इस विभाग में काम करने वाले लोगों की सुध लेने वाला न तो पूर्व में अविभाजित मध्यप्रदेश की सरकार में कोई था और न ही अब स्वतंत्र राज्य छत्तीसगढ़ बनने के बाद अब है। छत्तीसगढ़ राज्य ने अपनी स्थापना के 20 वर्ष पूरे तो कर लिए, लेकिन इस विभाग की हालत सुधारने की तरफ पहले 3 साल की कांग्रेस फिर 15 साल की भाजपा और अब पुन: 3 साल से सत्ता में काबिज कांग्रेस की सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है।

भाजपा की डॉ. रमन सिंह की सरकार ने तो वर्ष 2017 में वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पत्र के बाद वेतन बढ़ाने और एरियर्स भी दिए जाने की अनुमति दी थी, लेकिन वक्त के साथ फरमान ठंडे बस्ते में चला गया। आज जब पूरे देश में महंगाई चरम पर है। शासन के कई विभागीय कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर लगातार हड़ताल कर अपह्यनी मांगें मनवा रहे हैं। ऐसे में बगैर आंदोलन अपनी मांगों को मनवाने की आस में नगर सेना के कर्मचारी अपनी आंसूू पोंछने के इंतजार में हैं, लेकिन सरकार के अब तक के कार्यकाल से यह प्रतीत नहीं होता कि राज्य में इस पंचवर्षीय नगर सेना कर्मचारियों के आंसू राज्य सरकार पोंछ पाएगी।

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ नगर सेना के सैनिक इतनी महंगाई में 12800 रूपये में अपना गुजारा कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विपक्ष में बतौर विधायक निर्वाचित हुए थे, तब उन्होंने स्वयं तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को नगर सैनिकों का वेतन 27000 रूपये करने पत्र लिखा था, लेकिन सत्ता पर काबिज होने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नगर सेना के सैनिकों की पीड़ा पर परहम लगना तो दूर उनकी पीड़ा को महसूस करना भी उचित नहीं समझा।