अगर आप भी सरकार के बॉन्ड खरीदने की सोच रहे हैं? तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें, आपकी जेब पर पड़ता है इसका सीधा असर …..

भारत के बॉन्ड बाजार में आने वाले दिनों में बहुत कुछ ऐसा होने वाला है, जो शायद पहले कभी ना हुआ हो. सबसे पहले रिटेल डायरेक्ट की बात ही कर लेते हैं. दरअसल इस पहल के बाद आप सीधे सरकार को कर्ज दे सकेंगे, यानी कि सरकार के बॉन्ड सीधे खरीद सकेंगे. बता दें, सरकार पहले भी कर्ज लेती रही है. लेकिन उस समय बीच का माध्यम बैंक हुआ करते थे, सरल शब्दों में कहे तो, आप अपनी बचत बैंक में रखते थे और बैंक उस पैसे से बॉन्ड खरीद लेते थे.

लेकिन अब किसी भी उम्र और आय वर्ग के लोग इसपर निवेश कर सकते हैं. यानी कि, निवेश पोर्टफोलियो का एक हिस्सा डेट में रखने की सलाह आपको वित्तीय सलाहकार भी देते ही होंगे. सरकारी बॉन्ड इसी थाली का एक नया पकवान मान लीजिए. जिसका कॉम्पिटिशन पीपीएफ, एफडी और डेट म्युचुअल फंड जैसे जोखिम रहित निवेश से होगी. तो अगर आपकी डेट पोर्टफोलियों वाली थाली में जगह है तो आप भी इसे खरीद सकते हैं.

क्यों नहीं खरीदने चाहिए सरकार के बॉन्ड?

अगर आपके पोर्टफोलियो में जरूरत के मुताबिक डेट पहले से ही है. फिर आपको बॉन्ड खरीदने की कोई आवश्यकता नहीं है. क्योंकि कम जोखिम के साथ रिटर्न देने वाले विकल्प अक्सर महंगाई से पिट जाते हैं. अब सबसे जरूरी बात ये है कि आप बॉन्ड खरीदें या नहीं, लेकिन सरकार की बॉन्ड यील्ड पर नजर रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि सरकार जिस दर से कर्ज लेती है वही बाजार का बेंचमार्क होता है. सरकार कर्ज महंगा लेगी तो आपको भी कार, होम, एजुकेश लोन महंगे मिलेंगे. तो भले ही बॉन्ड ना खरीदें लेकिन बाजार पर नजर जरूर रखें.

अब समझिए सरकार ऐसा कर क्यों रही है?

दरअसल, रिटेल डायरेक्ट एक तरह से बॉन्ड बाजार का लोकतांत्रिकरण है. यानी कि, बड़े छोटे सब बराबर. सरकार एक तरफ छोटे निवेशकों को बॉन्ड खरीदने के लिए आमंत्रित कर रही है और दूसरी तरफ विदेशी निवेशकों के लिए भी दरवाजा खोल रही है. लेकिन विदेशियों से कर्ज लेना इतना आसान नहीं होगा. सरकार को अपने खातों में पारदर्शिता लानी होगी. बजट में घाटे कम करने होंगे, साथ ही महंगाई को काबू में रखना होगा और इस सबका सीधा रिश्ता आपकी हमारी जेब और जिंदगी से है.

इस बात का ध्यान रखना जरूरी

बॉन्ड बाजार की एक खिड़की महंगाई के मोहल्ले में भी खुलती है. महंगाई बढ़ेगी तो बॉन्ड की यील्ड भी बढ़ेगी. दरअसल, महंगाई काबू रहेगी तो सरकार को कर्ज भी सस्ता मिलेगा. सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिका को ही देख लीजिए, जहां पर महंगाई बढ़ते ही बॉन्ड बाजार थर्राने लगा है.