पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर फिलहाल लगाम लगने के आसार नहीं दिख रहे हैं. हां, अगर किसी राज्य में चुनावी बिगुल बजा तो पेट्रोल-डीजल के रेट स्थिर या कम हो सकते हैं, क्योंकि पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान ऐसा देखने को मिल चुका है. कुछ माह पहले हुए विधानसभा चुनावों के दौरान पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर थीं, लेकिन जैसे मतगणना समाप्त हुई. पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आग भड़क उठी, जो निरंतर जारी है. ईंधन की बढ़ती कीमतों का ठीकरा सरकार कच्चे तेल के रेट पर फोड़ दे रही है. आम आदमी पेट्रोल-डीजल भरवाने के लिए अपने दूसरे खर्चों में कटौती करने लगा है.
कोरोना महामारी के दौरान जहां, लोगों की नौकरी और रोजगार खत्म हो गए. मंहगाई का बढ़ता ग्राफ उनकी आर्थिक स्थिति को और कमजोर कर रहा है. पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम का असर हामारी जरूरत की हर चीजों पर पड़ता है. ईंधन के दाम बढ़ने से ट्रांसपोर्ट का किराया बढ़ता है, उसके बढ़ने से फलों-सब्जियों या और अन्य कमोडिटी की कीमतों में इजाफा होता है.
एक तरफ गरीबी के आंकड़े दूसरी ओर महंगाई
फिलहाल देश में करीब 80 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके गुजारे के लिए सरकार मुफ्त में आनाज दे रही है. वहीं, दूसरी तरफ पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से महंगाई आम लोगों को परेशान कर रही है
इसी साल फरवरी के महीने में हुए लोकलसर्किल के एक सर्वेक्षण में पता चला था कि, देश लगभग 51 प्रतिशत लोग ईंधन की कीमतों पर अपने खर्च का प्रबंधन करने के लिए अपने अन्य खर्चों में कटौती कर रहे हैं. 14 फीसदी लोगों की स्थिति ऐसी हुई है कि इस महंगाई से निपटने के लिए वो अपनी बचत की राशि में से खर्च करने लगे हैं.
जब पीएम मोदी ने बताया अपना नसीब अच्छा
साल 2014 में जब पहली बार दिल्ली की गद्दी पर प्रधानमंत्री बन नरेंद्र मोदी बैठे, तब कच्चे तेल की कीमत 106.85 डॉलर प्रति बैरल ( प्रति बैरल 159 लीटर) थी. सितंबर तक यह कीमतें 100 डॉलर के नीचे आ गंईं. तब से यह रेट 100 रुपये प्रति बैरल के नीचे ही है. सत्ता में आने के बाद जब ईंधन के रेट कम हुए तो पीएम मोदी ने इसे अपना नसीब बताकर खूब सुर्खियां बटोरी थीं.
कच्चे तेल के दाम में गिरावट पर नहीं मिली लोगों को राहत
मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट रही. मगर जनता को इसका फायदा नहीं मिला, बल्कि और टैक्स बोझ लाद दिया गया. जब पहली बार पीएम मोदी सत्ता में आए थे, तब पेट्रोल पर 34 फीसदी और डीजल पर 22 फीसदी टैक्स लगता था. आज वही बढ़कर पेट्रोल पर 64 प्रतिशत और डीजल पर 58 प्रतिशत हो चुका है.
13 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ी
केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी के जरिए टैक्स वसूलती है. 2014 में पेट्रोल पर यह 10.38 रुपये प्रति लीटर था. जबकि डीजल पर 4.52 रुपये लीटर. मोदी सरकार के कार्यकाल में 13 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ी है और तीन बार घटी है. आखिरी बार मई 2020 में एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी हुई थी. अब पेट्रोल पर 32.98 रुपये और डीजल पर 31.83 रुपये एक्साइज ड्यूटी है.
लाइव मिंट की 19 फरवरी, 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा दरों के हिसाब से पेट्रोल की कुल कीमत में से 67 प्रतिशत टैक्स शामिल होता है. इसमें केंद्र और राज्य दोनों के टैक्स हैं.
हर चीज होता है महंगा
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को बजट में समेटने के लिए आम आदमी अपने दूसरे खर्चों में कटौती शुरू करता है. वह नए कपड़े, रेस्तरां में खाना खाना और इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों की खरीद जैसी चीजों पर ब्रेक लगाता है. खाने-पीने की चीजों के रेट बढ़ने से वो राशन पर या पोषण पर होने वाले खर्च को भी कम करता है या बंद कर देता है.
किसानों के मोर्चे पर
ईंधन की बढ़ती कीमतों की मार इस बार किसानों को बड़ी जोर से लगने वाली है. क्योंकि खरीफ सीजन में फसलों की बुवाई शुरू होने वाली है और खबर है कि मॉनसून की रफ्तार धीमी हो गई. ऐसे में किसानों को ट्यूबेल के सहारे ही सिंचाई करनी होगी. ट्यूबेल चलाने के लिए डीजल की जरूरत पड़ेगी और फिर किसानों को भी बढ़ी हुई कीमतें का बोझ उठाना पड़ेगा.
गांवोंं में तेल का खेल
गांवों में पेट्रोल-डीजल का एक अलग ही कारोबार है. ग्रामीण इलाकों में पेट्रोल-पंप ना के बराबर होते हैं. ऐसे में दुकानदार ही शहरों से पेट्रोल-डीजल लाकर गांवों में अधिक रेट पर बेचते हैं और ज्यादातर किसान इनके पास ही डीजल खरीदकर ट्यूबेल से अपने खेतों की सिंचाई करते हैं. इस तरह से किसानों को बढ़ी हुई कीमतों की मार अधिक झेलनी पड़ती है.
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