कोयले की उपलब्धता बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है अंडरग्राउंड माइनिंग
विश्व की सबसे बड़ी आबादी के साथ, भारत दुनिया में ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। ऐसे में बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है और इस मांग को पूरा करने में कोयला अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हालांकि भारत ऊर्जा के कभी न खत्म होने वाले स्रोतों पर भी तेजी से कार्य कर रहा है लेकिन फिलहाल देश में बिजली की मांग और आपूर्ति को पूरा करने में सबसे ज्यादा योगदान, 78 फासदी के साथ कोयले का ही है। विशेषज्ञों का मानना है कि मजबूत आर्थिक विस्तार के साथ बिजली की मांग और बढ़ेगी, और इस बढ़ोतरी के साथ-साथ कोयले के उत्पादन पर भी बोझ बढ़ेगा। चूंकि कोयले के इस्तेमाल में भारी कटौती करने से देश के ऊर्जा क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है इसलिए भारत को अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हुए, पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से कोयला खनन की संभावनाओं को तलाशना होगा, जिसमें अंडरग्राउंड माइनिंग (भूमिगत खनन) महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
भूमिगत विधि से कोयला खनन पर्यावरण की दृष्टि से एक बेहतर विकल्प, जल प्रदूषण नहीं होता
पर्यावरण की दृष्टि से अंडरग्राउंड माइनिंग बेहद कारगर साबित हो सकती है। मुख्य रूप से इस विधि द्वारा खनन में वन क्षेत्र को विस्थापित करने की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे भूमि और वन्य जीवन का संरक्षण सुनिश्चित होता है। साथ ही यह भूमि के ह्रास या किसी प्रकार के नुकसान को रोकने में भी सहायक होता है और उपजाऊ ऊपरी सतह या मृदा को सुरक्षित रखने में कारगर साबित होता है। ओपन कास्ट खदानों के विरुद्ध अंडरग्राउंड माइनिंग से प्रदुषण का भार भी कम होता है, क्योंकि इसमें अतिभार हटाने जैसी प्रक्रियाएं शामिल होती हैं, जो खुली खदानों में प्रदूषण का प्रमुख कारण बनती हैं। इसके अतिरिक्त, अंडरग्राउंड माइनिंग विधि के जरिये जल प्रदुषण पर भी कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, और आस-पास होने वाला शोर का स्तर भी काफी कम होता है, जिससे माइन एरिया का वातावरण शांतिपूर्ण बना रहता है।
सामाजिक दृष्टि से काफी फायदेमंद है अंडरग्राउंड माइनिंग, भारत के ऊर्जा भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए महत्वपूर्ण
अंडरग्राउंड माइनिंग को समाज-हितैषी माना जाता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में स्थानीय निवासियों को विस्थापित होने का खतरा नहीं रहना, जिससे पुनर्वास और पुनर्स्थापना की भी कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। इसके अतिरिक्त, खनन के इस तरीके में पारंपरिक आजीविकाओं पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता, और कृषि भूमि को भी बिना किसी छेड़छाड़ के सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके साथ ही, महत्वपूर्ण रूप से अंडरग्राउंड माइनिंग से बेहतर गुणवत्ता का कोयला प्राप्त होता है, जिसे गुणात्मक रूप से श्रेष्ठ माना जाता है। यह सीधे तौर पर उच्च श्रेणी के कोयले के आयात को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकता है, जिससे देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूरा किया जा सकता है।
अच्छी तरह से प्रशिक्षित कुशल ऑपरेटर्स, ठेकेदारों को आउटसोर्सिंग, कुशल खदान डेवलपर और ऑपरेटर्स के माध्यम से अंडरग्राउंड माइनिंग की भूमिका को अत्यधिक निखारा जा सकता है। कुल मिलाकर देखें तो वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में, ऊर्जा सुरक्षा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना वैश्विक स्तर पर विकास के लिए महत्वपूर्ण है और निश्चित रूप से कोयले में ऊर्जा स्रोतों के बीच सबसे अधिक स्वदेशी संसाधन आधार प्रदान करने की क्षमता है। जिस प्रकार अनुमानित तौर पर वर्ष 2030-2035 के बीच कोयले की मांग चरम पर पहुंचने की संभावना है, ऐसे में कोयले की उपलब्धता बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने की दृष्टि से अंडरग्राउंड माइनिंग भारत की जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं के साथ-साथ ऊर्जा सुरक्षा, दोनों को संतुलित करने में सक्षम है। उल्लेखनीय है कि बेहतर उत्पादन तकनीकों के साथ, भूमिगत खनन श्रमिकों के लिए अधिक सुरक्षित हो गया है।
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