World Sparrow Day 2024: विश्व गौरैया दिवस आज, लुप्त नहीं हुई, रूठ गई है नन्हीं गौरैया

इंदौर। जब भी बच्चों को चिड़िया के बारे में बताया जाता है, तो सबसे पहले गौरैया का ही नाम आता है। आंगन में उछलती-कूदती नन्ही-सी गौरैया जिसकी चहचहाट दिनभर सुनाई देती थी, घर के आले में जिनके घोंसले हुआ करते थे, अब वही गौरैया नजर नहीं आती। ऐसा नहीं कि गौरैया लुप्त हो गई हैं, किंतु यह सच है कि शहर में इनकी संख्या घटती जा रही है।

पहले जहां शहर के हर हिस्से में गौरैया की चहचहाहट, धूल में नहाने के दृश्य और इन्हें यहां-वहां फुदकते देखा जा सकता था, मगर अब यह सब देखने को नहीं मिलता। यदि कोई कहता है कि हमारे आंगन में या कालोनी के बगीचे में तो आज भी गौरैया नजर आती है, तो यह दूसरों के लिए उत्सुकता और प्रसन्नता का विषय बन जाता है। इंदौर भले ही स्वच्छ और स्मार्ट सिटी बन गया हो, किंतु गौरेया यहां कम हो गई हैं।

पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि शहर में बेशक गौरैया नजर नहीं आती या कुछ ही क्षेत्रों में नजर आती है, लेकिन गांव में आज भी इनकी संख्या कम नहीं है। ये लुप्त नहीं हुईं बल्कि शहरों से पलायन कर चुकी हैं। नन्ही चिरइया को दोबारा हम अपने शहर में बुला सकते हैं। जरूरत है तो छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने और थोड़ी-बहुत जुगत लगाने की। छोटी-छोटी कोशिश बड़े सकारात्मक परिणाम दे सकती है और एक बार फिर हमारे आंगन में नन्हीं गौरैया बड़े समूह के साथ फुदकती हुई दिखाई दे सकती है।

तो घर में भी आ सकती हैं चिरकली

पर्यावरणविद् पद्मश्री भालू मोंढे के अनुसार यदि गौरैया को अनुकूल माहौल मिले, तो वह अपना कुनबा बढ़ा ही लेती है। इसका उदाहरण है सिरपुर तालाब। वहां आज भी करीब दो सौ गौरैया देखी जा सकती हैं। इसके अलावा रेसिडेंसी कोठी परिसर, डेली कालेज, खंडवा रोड स्थित देवी अहिल्या विश्वविद्यालय परिसर, होलकर विज्ञान महाविद्यालय का कुछ भाग, एमजीएम मेडिकल कालेज की पुरानी इमारत आदि जगहों पर भी गौरैया नजर आती है।

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ये स्थान ऐसे हैं, जहां लोगों की आवाजाही अपेक्षाकृत कम होने से ये सुरक्षित महसूस करती हैं। यही नहीं, यहां की कच्ची भूमि पर उगने वाली घास के बीज, यहां पनपने वाले कीड़े आदि इनका भोजन हैं। यदि हम अपने घर में भी ऐसा ही वातावरण इन्हें दें, तो ये वहां भी आ सकती हैं।

आपके घर में हो नन्हीं गौरैया का भी घर

पक्षी विशेषज्ञ अजय गडिकर के अनुसार छोटे-छोटे तरीकों को अपनाकर हम आवासीय क्षेत्र में भी गौरैया को बुला सकते हैं। इसके लिए घर के बाहर थोड़ा स्थान ऐसा रखें, जहां मिट्टी और देसी घास लगी हो। कोई स्थान ऐसा सुनिश्चित करें जहां इनके लिए दाना डाला जा सकता हो और पानी के सकोरे रखे हों। किंतु ऐसी जगह पर जानवर या इंसान की आवाजाही नहीं होनी चाहिए।

घर के आसपास या कालोनी के बगीचे में कुछ झाड़ियां हों ताकि वह उनमें बैठ सके। वर्तमान में घर में आले जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती, जहां गौरैया घोंसला बना सके इसलिए घर में बर्ड हाउस लगाएं, जिसमें वह घोंसला बनाकर अपना जीवनचक्र आगे बढ़ा सके। बबूल, शहतूत, गुड़हल, करोंदे, फालसे, मेंहदी जैसे पौधे लगाकर भी इन्हें आकर्षित किया जा सकता है।

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हानिकारक रसायन से भी पहुंच रहा नुकसान

पर्यावरणविद् रवि शर्मा के अनुसार, गौरैया को धूल के मैदान इसलिए चाहिए ताकि उसमें पाए जाने वाले कीट को वे अपने बच्चों को खिला सके। चूंकि अब धूल के मैदान खत्म हो गए हैं और लोग बारीक अनाज भी नहीं डालते, इसलिए शहरी क्षेत्र में गौरैया नजर नहीं आती। इसके अलावा कीटनाशक भी इन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैं।

यदि आपके घर-आंगन में पौधे हैं, तो जैविक पद्धति से उनके कीट हटाएं ताकि हानिकारक रसायन का दुष्प्रभाव गौरैया पर न पड़े। देसी घास लगाएं जिसके बीज गौरैया खा सके। इसके अलावा विभिन्न तरह के अनाज का दलिया बनाकर उसे मिलाकर डालें क्योंकि गौरैया बारीक अनाज ही खा पाती है।

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