कोरबा, 12 जनवरी । इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में यूथ डे के अवसर पर खास आयोजन किया गया । प्रातः कालीन सभा में कक्षा आठवीं की छात्रा पायल सहारन ने सभी विद्यार्थियों को विवेकानंद की उपलब्धियां एवं विचार के बारे में अवगत कराया। कक्षा छठवीं की छात्राओं के द्वारा बहुत ही सुंदर पप्रेरक गीत की प्रस्तुति दी गई।यह गीत युवाओं को प्रेरित एवं जागृत करने हेतु थी। प्री प्राइमरी की छात्र-छात्राओं द्वारा भी स्वामी विवेकानंद का रूप धरकर विभिन्न प्रकार के कविता एवं स्वामी विवेकानंद के विचारों को प्रस्तुत किया गया।
युवा दिवस पर आयोजित रचनात्मक लेखन प्रतियोगिता में अपना शानदार प्रस्तुति देने वाले विद्यार्थियों को प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता के द्वारा प्रातः कालीन सभागार में सम्मानित किया गया। विद्यार्थियों ने स्वामी विवेकानंद जी के आकर्षक चित्र भी बनाए थे। प्रातः कालीन सभा में विद्यालय के सीसीए प्रभारी श्री हेमलाल श्रीवास ने विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के माध्यम से स्वामी विवेकानंद जी की उपलब्धियां एवं उनके विचार पर प्रकाश डालकर विद्यार्थियों का ज्ञानवर्धन किया। उन्होंने प्रातः कालीन सभा में विद्यार्थियों को इस वर्ष के युवा दिवस की थीम के बारे में भी बताया उन्होंने बताया कि इस वर्ष युवा दिवस की थीम है इट्स ऑन योर माइंड अर्थात यदि हम सकारात्मक रहे तो हम किसी भी उपलब्धि को स्पर्श कर सकते हैं।डॉक्टर संजय गुप्ता ने सभा में उपस्थित विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आज यूथ को जोश के साथ होश में रहने की जरूरत है । जोश और होश दोनों के बैलेंस की जरूरत है एक उदाहरण देते हुवे उन्होंने बतलाया कि एक मर्तबा स्वामी विवेकानंद विदेश में धर्म का प्रचार करने के लिये जाने वाले थे उन्होंने यह बात माता सारदा से पूछी माता सारदा नें पास पड़े चाकू को उठाकर देने को कहा स्वामी जी ने चाकू उठाकर माता सारदा को दी इस पर माता सारदा ने स्वामी जी से कहा आप हिंदुत्व का धर्म का प्रचार करने की काबिलियत रखते हो और यह कार्य बखूबी कर सकते हो इस पर स्वामी विवेकानंद ने पूछा कि आपने यह बात किस आधार पर कह दी तब माता सारदा ने कहा कि अगर किसी और से मैंने यह चाकू मांगा होता तो वह चाकू की नोक मेरे तरफ और उसकी हैंडल अपने हथेली में पकड़कर मुझे देता परंतु आपने ऐसा नहीं किया आपने जब मुझे चाकू दी तो चाकू की नोंक अपने हथेली में और हैंडल मेरे तरफ की जिससे साबित हुवा की आप दूसरों की रक्षा के लिए स्वयं को दांव पर लगा सकते हो पर सामने वाले को नुकसान नहीं पहुंचा सकते और यही तो धर्म है।
डॉ संजय गुप्ता ने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से हमे प्रेरणा लेनी चाहिए वह यूथ आइकॉन के रूप में अपने गुणों व कर्मों के बदौलत अपनी पहचान बनाये, उनका जन्म ऐसे समय मे हुवा जब भारत देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था । ऐसे समय मे उनके विचार, सामाजिक उत्थान हेतु उनके मार्गदर्शन ने समाज को राह प्रदान की, उन्होंने अपनी शक्तियों को पहचाना था उसे प्रैक्टिकल जीवन मे एप्लीकेशन किया था, उनके विचार 100 वर्षों पहले भी प्रषांगिक थे आज भी प्रषांगिक हैं जब तक मानव जीवन है तब तक प्रषांगिक रहेंगे । चाहे हम बात करें भगत सिंह जी की या आज के समय मे अगर हम बात करें एपीजे अब्दुल कलाम जी की वह स्वामी विवेकानंद जी के नक्शे कदम पर चले उनके आइकॉन स्वामी विवेकानंद जी ही रहे, विवेकानंद जी ने हिंदुत्व को व राष्ट्रवाद को पुनर्जीवित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । उनका जीवन मानव सेवा के लिये समर्पित रहा, उनका कहना था, ज्ञान लेने के पश्चात ज्ञान बांटना चाहिए क्योंकि ज्ञान से ही इस संसार को बदला जा सकता है । उनका जीवन आदर्श रहा जिनके पदचिन्हों पर चलकर लोग आज भी बहोत कुछ सीखते हैं । उनके व्यक्तित्व को उनके गुणों को लोगों को धारण कर उन जैसा गुणवान चरित्रवान अपने आप को बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए, स्वामी विवेकानंद चलते फिरते धर्म के आइकॉन थे जिनके व्यक्तित्व से धर्म क्या है यह साफ झलकता था, उनके विचारो से वाणी से कर्म से धर्म रिफ्लेक्ट होता था।
उन्होंने बतलाया कि किस तरह स्वामी विवेकानंद जी ने अथक प्रयास कर राष्ट्र के नाम के रौशन किया किस तरह वह अपने लक्ष्य को लेकर डटे रहे, वह अकेले जरूर पड़े पर कभी हार नहीं माने, उनका आत्मविश्वास का स्तर कितना ऊंचा रहा होगा जो उन्होंने इतना बड़ा लक्ष्य लेकर चले भी हांसिल भी किया । कहते लक्ष्य जितना बड़ा लक्ष्य प्राप्ति के बीच मे प्रोब्लम भी उतनी ही ज्यादा आती है । ऐसा नहीं कि उन्होंने आसानी से लक्ष्य प्राप्त कर लिया प्रॉब्लम उनके भी फेस करना पड़ा पर वह डटे रहे और अंत तक डटे रहे आखिरकार कहीं जाकर उन्हें वह मुकाम मिला जिनके लिए वह प्रतासरत थे, आज हम अगर गौर फरमाएं तो लोगों का जीवन स्वयं के लिए ही कमाने खाने में गुजर जाता है दूसरों के बारे में करना तो दूर कोई सोचता भी नहीं है पर स्वामी विवेकानंद जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि उनमे अहम की भावना नहीं बल्कि हम की भावना था उनके कार्य स्वयं के प्रति के साथ सर्व के प्रति भी रहे, विश्व बंधुत्व की भावना उनके मन मे थी, वह लोगों को आत्मिक दृश्टिकोण से देखते हैं इसलिय सर्व मनुस्य आत्माएं उनके लिये एक समान थे या यह कहें उनमे समानता की भावना थी, वह ऊंच नीच, अमीरी गरीबी से परे इंसान को इंसानियत की नजर से देखते थे, उनमे दया थी करुणा थी, वह कर्मयोगी थे अर्थात हर कर्म करते परमात्मा की याद में रहते थे वह कर्म को परमात्मा को समर्पित करते थे आर्थत वह कभी अपनी प्रशंसा स्वीकार नहीं करते थे क्योंकि हर कार्य को वह कहते थे कि परमात्मा करा रहा है मैं तो बस निमित्त हूं, इस भाव से उनके मन मे अहंकार नहीं पनपता था । उनके विचार सर्वश्रेष्ठ थे जो मानव को महापुरुष बनाने वाले विचार थे अगर उनके विचारों पर आज की पीढ़ी चल जाये तो चंद दिनों में भारत विश्व गुरु बन जाये वह कहा करते थे उन्हें बस 100 अपने जैसे युवा मिल जाये तो वह राष्ट्र को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा देंगे पर अफसोस कि आज तक वह हो नहीं सका क्योकि युगपुरुष तो युग में व करोड़ो में एक होता है ।
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