कौन थीं गीता मुखर्जी, जिन्हें महिला आरक्षण आंदोलन की योद्धा बता रही है भाजपा

Women Reservation Bill History and Geeta Mukherjee: महिला आरक्षण बिल पर लोकसभा में आज चर्चा के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के बीच न सिर्फ इसका श्रेय लेने की होड़ देखने को मिली बल्कि तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने ममता बनर्जी को महिला आरक्षण की माता करार दे दिया।

इसी बीच गीता मुखर्जी का भी नाम गूंजा। इससे पहले सोनिया गांधी ने कहा कि यह बिल उनके जीवनसाथी राजीव गांधी का सपना और उनकी जिंदगी का मार्मिक क्षण है। इसकी काट में बीजेपी के निशिकांत दुबे ने गीता मुखर्जी और सुषमा स्वराज का नाम लिया।

क्या है महिला आरक्षण का इतिहास?


दरअसल, पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने ही मई 1989 में सबसे पहले ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था और इसके जरिए पहली बार उन्होंने निर्वाचित निकायों में महिला आरक्षण का बीज बोया था। हालांकि, विधेयक लोकसभा में पारित हो गया लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में पारित नहीं हो सका।

पीवी नरसिम्हा राव के काल में बिल हुआ पास


1992 और 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने संविधान संशोधन विधेयक 72 और 73 को फिर से पेश किया। इसके जरिए ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सभी पदों पर एक तिहाई (33%) आरक्षण लागू किया गया। इसका असर यह हुआ कि अब देश भर में पंचायतों और नगर पालिकाओं में लगभग 15 लाख निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं।

देवगौड़ा का क्या योगदान


12 सितंबर, 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार ने पहली बार महिला आरक्षण बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में लोकसभा में पेश किया। विधेयक को लोकसभा में मंजूरी नहीं मिली। लालू-मुलायम और शरद यादव जैसे नेताओं ने इसका जबर्दस्त विरोध किया। बीजेपी के भी कुछ सांसदों ने विरोध किया। इसके बाद बिल को गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। गीता मुखर्जी समिति ने दिसंबर 1996 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें कुल सात सिफारिशें की गई थीं।

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