रायपुर,07 अगस्त। कथाकार ओमानंद महाराज ने कहा कि श्रीराम की कथा हमें धर्म का पालन करना सिखाती है। अगर आप धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी आपकी रक्षा करेगा। उन्होंने उपस्थित भक्तों से पूछा कि भगवान राम का अवतरण क्यों हुआ? क्या राक्षसों-पापियों के संहार के लिए… राक्षसों-पापियों के लिए लक्षमण ही पर्याप्त है। पालक झपकने से पहले ही पृथ्वी के सारे पापियों का नाश कर सकते हैं। साधु-संतों की रक्षा के लिए? उनके लिए हनुमान जी हैं, तो फिर श्रीराम का अवतरण क्यों हुआ? कथाकार ओमानंद महाराज ने बताया कि धर्म की रक्षा के लिए भगवान राम ने पूर्णावतार लिया।
संतोषी नगर के माता कर्मा धाम में आयोजित श्रीराम कथा के सप्तम दिवस ओमानंद महाराज ने श्रीराम-केवट संवाद का प्रसंग सुनाया। महाराज दशरथ के आज्ञा से श्रीराम मात सीता और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास के लिए अयोध्या से निकले। उनके जाने से अयोध्या रो पड़ी। अयोध्या के निवासी, वहां रहने वाले जीव-जंतु, तो क्या पेड़ पौधे रो पड़े। आगे आगे श्रीराम चल रहे थे, उनके पीछे पूरी अयोध्या चल पड़ी। चलते चलते वे तमसा नदी के तट पर रुके। पूरे अयोध्या की प्रजा भी रुकी। रात हुई तो श्रीराम ने सुमंत से कहा कि अब हम यहां से प्रस्थान करेंगे। अयोध्या की प्रजा को छोड़ वे चारों वहां से चल पड़े। आगे गंगा नदी के तट पर रुके। वहां उनकी भेंट निषाद राज गुहा से हुई।
उन्होंने अपने सखा से भेंट की और बताया कि हमें गंगा पार प्रयागराज जाना है। निषाद राज भी जान चुके थे कि श्रीराम को वनवास मिला है, वे उन्हें रोकने के कोशिश करते हैं किन्तु श्री राम अपने धर्म का पालन कर रहे हैं, वे अपने वचन पर अडिग रहे। वहीं सुमंत ने श्रीराम को समझाया कि अब वापस लौट चलिए, लेकिन श्रीराम ने सुमंत से कहा कि आप लौट जाएं, मुझे अपने धर्म का पालन करने दें। सुमंत ने माता सीता से विनती की, लक्ष्मण से विनती की, दोनो ने भी उन्हें मन कर दिया। सुमंत अकेले अयोध्या लौट गए। श्रीराम ने निषाद राज से गंगा पार कराने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि एक नाव है, आप केवट से बात कर लें।
श्रीराम केवट के पास आये, और कहा कि हमें गंगा पार जाना है, क्या आप हमें ले जाएंगे? केवट ने कहा कि पहले आप मुझे अपने चरण धोने के लिए कहें। श्रीराम को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं? केवट ने कहा कि आपके बारे में में जानत हूँ, आपकी चरणों की धूल से जब एक शिला सुन्दर कन्या में परिवर्तित हो जाती है। अगर मेरी नौका भी स्त्री बनकर स्वर्ग चली गई तो? केवट चरण धोने के लिए अड़ा रहा। आखिरकार श्रीराम से उसे आज्ञा दे दी। केवट बड़ी तन्मयता से उनके चरण धोने लगा। लक्ष्मण और सीता को बड़ा आश्चर्य हुआ कि केवट काफी देर से केवल एक पैर को दो रहा है। श्रीराम ने कहा कि कब तक एक पैर को धोते रहोगे? केवट बोला मैं संतुष्ट होना चाहता हूँ। यह सुनकर श्रीराम हंस पड़े। पैर धुल गया तो केवट ने दूसरा पैर माँगा, श्रीराम के कहा कि मैं गिर जाऊँगा। तो उसने कहा कि आप मेरे मस्तक पर हाथ रखकर दूसरा पैर सामने करें। इस प्रकार केवट ने उनके चरण धोए।
केवट के बारे में बताते हुए ओमानंद महाराज ने कहा कि यह केवट पूर्वजन्म में एक कछुआ था, श्रीराम नारायण थे, माता सीता लक्ष्मी और लक्ष्मण शेषनाग। कछुआ नारायण के चरण छूने की कोशिश करता था, तो शेषनाग उसे बाहर फेंक देते थे। वह फिर धीरे धीरे पास आता, फिर उसे बाहर फेंक दिया जाता। इस जन्म में केवट ने अपना जीवन सार्थक कर लिया। उसने मनभर कर नारायण रूपी श्रीराम के चरण धोये, श्रीराम ने उसके मस्तक पर अपने हाथ रखे, उसका कल्याण हो गया।
जब नाव में बैठने का समय आया तो केवट ने उन्हें रोक दिया। उसने कहा कि आपसे पहले और भी लोग हैं जिन्हे मुझे पार लगाना है। तीनो को आश्चर्य हुआ, उन्होंने कहा कि कौन? केवट ने जल लेकर तर्पण किया और कहा कि मैंने अपने पितरों को पार लगा दिया, अब आपको पार लगाऊंगा। जब गंगा पार पहुंचे तो श्रीराम ने उतराई के लिए पूछा तो केवट ने मना कर दिया। उसने कहा कि प्रभु आप लोगों को भवसागर पार करवाते हैं, मैंने आपको गंगासागर पार कराया। बस आप भी मुझे भवसागर पार करवा दें।
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