Monsoon And Asthma: मानसून अस्थमा की स्थिति को बना सकता है बेहद गंभीर, एक्सपर्ट से जानें कैसे रखें अपना ख्याल

Monsoon And Asthma: अस्थमा, एक ऐसी गंभीर श्वसन स्थिति है, जिसमें सांस लेने के मार्ग में सूजन हो जाती है और एयरवेज छोटा हो जाता है। यह देश भर में लगभग 34 मिलियन व्यक्तियों को प्रभावित करता है जहां मानसून की शुरुआत तपती गर्मी से राहत दिलाती है वहीं अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए ये मौसम कई सारी मुसीबतें लेकर आता है। बदलते मौसम के मिजाज़ के साथ, बढ़ी हुई नमी, साथ ही फंगस और सीलन, धूल के कण आदि जैसे एलर्जी कारक अस्थमा के लक्षणों को गंभीर रूप से बढ़ा सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, गर्मियों से लेकर मानसून तक अस्थमा एक्शन प्लान तैयार करके अस्थमा को सही तरीके से प्रबंधित किया जा सकता है। 

अस्थमा एक्शन प्लान क्या है?

अस्थमा एक्शन प्लान एक डॉक्टर के मशवरे से बनाई गई एक लिखित वर्कशीट है, जिसमें दवाओं को कब लिया जाना चाहिए, स्थिति की गंभीरता, ट्रिगर, एलर्जी आदि के निर्देशों को लिखा गया है। जिससे अस्थमा के रोगियों को अपनी स्थिति कंट्रोल रखने में मदद मिलती है। जिन रोगियों में मानसून के दौरान लक्षण विकसित होते हैं, उनके लिए यह जरूरी है कि डॉक्टर के परामर्श से अपनी एक्शन प्लान को अपडेट करते रहें। अधिकांश मामलों में प्लान को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। 

ग्रीन– जो एक सेफ जोन है जहां अस्थमा के लक्षण कंट्रोल में होते हैं और डॉक्टर द्वारा बताए अनुसार लॉन्ग टर्म मेडिसिन जारी रखी जाती है।

येलो ज़ोन- तब होता है जब लक्षण वर्तमान में अनुभव किए जा रहे हों और डॉक्टर द्वारा बताई गई जल्द-राहत वाली दवाएं लेने की ज़रूरत हो।

रेड जोन- तब होता है जब लक्षण गंभीर रूप से बढ़ जाते हैं। यहां, एक्शन प्लान बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है और यदि लक्षणों में सुधार नहीं होता है तो तत्काल मेडिकल ट्रीटमेंट देने की आवश्यकता होती है।

कोई व्यक्ति अपने फेफड़ों से कितनी हवा निकाल सकता है, उसे मापने के लिए डॉक्टर पीक फ्लो रेट नामक एक टेस्ट का उपयोग करते हैं। टेस्ट यह निर्धारित करने में मदद करता है कि व्यक्ति के फेफड़ों का फंक्शन अच्छी रेंज(हरा), चेतावनी रेंज (पीला), या खतरनाक रेंज (लाल) में है।

एक्शन प्लान क्यों महत्वपूर्ण है?

प्रारंभिक पहचान और रोकथाम: यह व्यक्तियों को शुरूआती चेतावनी संकेतों की पहचान करने और उनकी रोकथाम के उपाए बताने में मदद करता है। उनके ट्रिगर्स और लक्षणों को समझकर, व्यक्ति अपनी स्थिति को मैनेज कर सकता है, जिससे गंभीर अस्थमा के दौरे का खतरा कम हो सकता है। यह प्लान अलग-अलग हालातों के दौरान उठाए जाने वाले कदमों की एक रूपरेखा तैयार करती है, जैसे बढ़ी हुई नमी, एलर्जी के संपर्क में आना, या अचानक मौसम में बदलाव, जिससे व्यक्ति संभावित ट्रिगर्स से बचे रह सकें।

मेडिकेशन मैनेजमेंट: एक अच्छी तरह से तैयार किया हुआ एक्शन प्लान जिससे व्यक्तियों को पूरी मेडिकेशन के बारे में जानकारी दी जाती है। यह नियमित रोकथाम दवाओं, रेस्क्यू इन्हेलर और बदलती मौसम स्थितियों के आधार पर ज़रूरी किसी भी बदलावों पर पूरी जानकारी प्रदान करता है। यह प्लान अस्थमा कंट्रोल सुनिश्चित करने के लिए बताई गई दवा शेड्यूल का पालन करने और किसी भी जरूरी बदलाव के लिए हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स से मशविरा करने के महत्व पर भी जोर देता है।

एलर्जी से बचाव: गर्मियों से लेकर मानसून के महीनों में अक्सर मोल्ड, पॉलेन और धूल के कण से एलर्जी बढ़ती है। अस्थमा एक्शन प्लान व्यक्तियों को सामान्य एलर्जी के बारे में जानकारी देती है और बचाव के उपायों के बारे में भी। इसमें जोखिम को कम करने के लिए खिड़कियां बंद रखने, एयर प्यूरीफायर का उपयोग करने और रहने की जगहों की नियमित रूप से सफाई और धूल झाड़ने जैसी सलाह शामिल हो सकती हैं। 

आपातकालीन स्थितियों के लिए तैयारी: रोकथाम जरूरी है, लेकिन आपातकालीन स्थितियों के लिए तैयार रहना भी आवश्यक है। अस्थमा एक्शन प्लान में अस्थमा के गंभीर अटैक या तीव्रता के दौरान उठाए जाने वाले कदमों के बारे में बताया गया है। इसमें रेस्क्यू मेडिकेशन का उपयोग करने, हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स से संपर्क करने और अगर जरूरी हो, तो इमरजेंसी मेडिकल सहायता लेने के निर्देश शामिल हैं। एक स्पष्ट योजना बनाकर, व्यक्ति और उनकी देखभाल करने वाले इमरजेंसी स्थिति के दौरान तेजी से और प्रभावी ढंग से कार्य कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से जीवन बचाया जा सकता है।

जीवन की बेहतर गुणवत्ता: गर्मियों से लेकर मानसून के महीनों के लिए विशेष रूप से तैयार की गई अस्थमा एक्शन प्लान बेहतर रोग मैनेजमेंट को बढ़ावा देती है, जिससे आपकी लाइफस्टाइल में सुधार होता है। एक्शन प्लान के दिशानिर्देशों का पालन करने से, व्यक्तियों को अस्थमा के लक्षण कम होते हैं, और अस्पताल जाने की ज़रूरत कम पड़ती है। इससे मरीज बिना कोई टेंशन तरह-तरह की एक्टिविटीज में भाग ले सकता है। 

(डॉ. अर्जुन खन्ना, हेड ऑफ़ द डिपार्टमेंट एंड सीनियर कंसलटेंट, पल्मोनरी मेडिसिन विभाग से बातचीत पर आधारित)

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