गृहस्थ दांपत्य की सीख कृष्ण जी के दांपत्य जीवन से लें : पंडित मेहता

रायपुर ,12 जुलाई । आज के रिश्ते केवल दिखावे मात्र के रह गये हैं, गहराई खत्म होते जा रही है इसके दोषी और कोई नहीं हम स्वयं है। जीवन में रिश्ते और नातों का बहुत महत्व है, रिश्ते हम बनाते है नाते भगवान बनाता है। रिश्तों को टिकाने की पूरी जवाबदारी हमारी होती है और यदि नाते टूटने लगे तो भगवान के सिवाय और कोई नहीं जोड़ सकता इसलिए रिश्ते और नातों को बनाएं रखे। श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन भगवान कृष्ण की गृहस्थ जीवन का वर्णन करते हुए पंडित विजय शंकर मेहता ने ये बातें बताई। कथा प्रारंभ होने से पूर्व संस्था की ओर से पंडित विजय शंकर मेहता के सम्मान स्वरुप तैयार किया गया सम्मान पत्र पाठ करने के बाद उन्हें भेंट किया गया।  इस अवसर पर लव फॉर ह्मयुमैनिटी नींव संस्था के सदस्य गण सुभाष राठी, शिवनारायण मुंदड़ा, प्रकाश माहेश्वरी, डा. सतीश राठी, रमेश सोमानी, बसंत राठी, मुकेश शाह, रमेश झंवर, राकेश सोमानी, प्रमोद बियानी, पवन सोनी, पंकज लढ्ढा, ऋषि पुंगलिया, कमल कोठारी, नरेंद्र डागा, राजेश डागा, संतोष परमार, प्रतीक प्रकल्प राठी, मोहन उपस्थित थे।

पंडित मेहता ने कहा कि संसार में रिश्ते तो मनुष्य बनाता है और रिश्ते को निभाने की जवाबदारी भी उसकी ही होती है, रिश्ते न टूटे और बने रहें और यदि किसी कारणवश यदि उनमें किसी प्रकार की दरार आ जाएं तो उसे दूर करने का भी जवाबदारी हमारी है, प्रयास यह करना चाहिए कि रिश्ते हमेशा बने रहें और उसमें मिठास भी पूर्वत कायम रहें, दुख के समय में यही रिश्ते सहारा बनते है। नाते भगवान बनाता है और नाते बनाने का अधिकार किसी को नहीं है, यह ऊपर से ही तय होकर आता है कि कौन माता-पिता होंगे, कौन भाई-बहन, कौन पति-पत्नी होंगे, यदि नातों में कहीं कोई गड़बड़ हो जाए तो सीधा भगवान से ही इसे ठीक करने को कहना चाहिए क्योंकि नातों को बनाया भी उन्होंने ही है तो उसे जोड़ेंगे भी वही और उसकी जवाबदारी भी उन्हीं की है, उन पर भरोसा होना चाहिए क्योंकि वे ही सब ठीक करते है।

पंडित जी ने कहा कि भगवान श्रीराम और कृष्ण का जीवन ही अलग रहा। राम का जीवन सरल त्याग का था तो वहीं कृष्ण का जीवन शुरु से ही चुनौती पूर्ण था। कृष्ण का जीवन मनुष्य के लिए सबक है कि उसे संसार में कैसे रहना चाहिए। उन्हें परिवार और समाज दोनों में ही चुनौतियों का सामना करना पड़ा। गृहस्थ जीवन तभी सफल है जब तन, मन, धन सब कुछ व्यवस्थित और सक्षम हो, जीवन में दुख और परेशानियां आते रहती है ऐसे समय में मनुष्य को धैर्य नहीं छोडऩा चाहिए। भगवान का जीवन भी उथल-पुथल से भरा रहा, संतान का दुख उन्हें भी हुआ लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने दायित्वों से कभी मुख नहीं मोड़ा। दुख आने पर जीवन रुक नहीं जाता, जीवन वैसे ही चलते रहता है, लेकिन आज दुख होने पर लोग एकांत का चयन करते है जो नहीं करना चाहिए इससे दुख कम होने वाला नहीं है। कलंक भगवान पर भी लगे लेकिन भगवान ने उस कलंक को कैसे धोया यह मनुष्य को सीख देता है। इस दुनिया में सबसे आसान काम है किसी को बदनाम करना, यदि बदनामी का कलंक किसी पर लग जाए तो वह उसे जीवन पर्यन्त नहीं मिटा पाता, वह अपने पक्ष में सारे तर्क रखता है लेकिन कोई मनाने को तैयार नहीं होता। भगवान कृष्ण पर भी चोरी और हत्या का कलंक लगा, भरत जी पर भी कलंक लगा लेकिन त्याग और धैर्य से उन्होंने इस कलंक को मिटाया।

पंडित विजय शंकर मेहता जी ने कहा कि जो भी काम करो वह 100 प्रतिशत होना चाहिए, भगवान अपना जो भी कार्य करते है वह पूरा 100 प्रतिशत होता है और फिर उसमें किसी भी प्रकार का कोई संदेह या कोई चूक नहीं होती। भगवान को अभिमान कतई पसंद नहीं है फिर चाहे रुकमणि ही क्यों न हो। अभिमान आने पर उन्होंने रूकमणि को भी नहीं छोड़ा, लेकिन उन्हें किस तरह से समझाया यह हमें सीखना चाहिए। पति और पत्नी को एकांत में मनो-विनोद 24 घंटे में एक बार अवश्य करना चाहिए। दांपत्य जीवन एक तपस्या है, स्त्री और पुरुष का संबंध केवल भोग के लिए नहीं है। पंडित जी ने कहा कि कथा जीवन जीने की कला सीखाती है, आज माता-पिता अपने बच्चों को वे सारी सुख-सुविधाएं दे रहे है और उनका कैरियर बनाने में सहयोग कर रहे है लेकिन उन्हें संस्कार नहीं दे पा रहे है। संस्कार कथा से ही दिए जा सकते है, आने वाले समय में यदि बच्चों में संस्कार का अभाव बढ़ते जाएगा तो यह परिवार के टूटने का मूल कारण होगा। श्रीमद् भागवत कथा विश्रांति के अंतिम दिन गुरुवार को कथा समय सुबह 10 से 1 बजे तक रहेगा। सुबह 8.30 बजे से भीमसेन सभा भवन में हवन होगा।