रायपुर ,08 जुलाई । मन का नियंत्रण में होना बहुत जरुरी है क्योंकि मन ही जीवन में अशांति का एक कारण है, वह केंद्र में कभी भी परमात्मा को देखना पसंद नहीं करता। मन पर नियंत्रण पाने का एक मात्र विकल्प यही है कि मन को उसका भोजन देना बंद कर दें, मन अपना भोजन सांसों से ग्रहण करता है। भगवान को पाने के जो नवधा भक्ति के मार्ग बताए गए है उनमें बाधा डालने का काम मन ही करता है। लव फॉर ह्मयुमैनिटी नींव संस्था द्वारा मैक कॉलेज ऑडिटोरियम समता कॉलोनी में श्रीमद् भागवत कथा आयोजन के दूसरे दिन कथावाचक पंडित विजय शंकर मेहता ने ये बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि श्रवण भक्ति, कीर्तन भक्ति, सेवन भक्ति, भृत्य भक्ति, अर्चन भक्ति, वंदन भक्ति, सखी भक्ति इनमें से जो भी जीवन कर सकें वह उसे करना चाहिए लेकिन अंतिम में आत्म निवेदन भक्ति तो सभी कर सकते है लेकिन मन यह काम करने नहीं देता। कर्म काण्ड करने और दिखावे की पूजा से या मंदिरों और तीर्थ में जाने से मन कभी शांत नहीं हो सकता। जीवन में यदि शांति लाना है तो मन पर नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक है। भगवान के जो भी कार्य करने के लिए आप प्रयास करते है मन उसमें सबसे बड़ी बाधा होता है, वह कोई भी काम नहीं करने देता। मन से अभाव का नाम ही ध्यान है और यह ध्यान बिना योग के जीवन में नहीं आ सकता।
भगवान में यदि ध्यान करना है तो योग करना ही होगा, योग से ही ध्यान लग सकता है। विचार और स्मृति मन का प्रिय भोजन है और मन अपना यह भोजन सांस के जरिए प्राप्त करता है, यदि मन को नियंत्रित करना है तो उसके इन दोनों भोजन को बंद करना होगा। सांस में हमेशा केवल भगवान का स्मरण हो और यह स्मरण ही मन के विचार को बदल सकते है। मंत्र को सांस से जोडऩा जरुरी है तभी मन निष्क्रिय होगा और मन निष्क्रिय हुआ तो फिर जीवन में शांति ही है। शरीर का आनंद केवल तीन चीजें ही देता है नींद, भोग और भोजन। इनसे शरीर को संतोष मिलता है लेकिन आत्मा को शांति नहीं मिलती, आत्मा को शांति तब मिलती है जब मन नियंत्रण में हो।
पंडित मेहता ने कहा कि भक्ति में मन को नियंत्रित करना अतिआवश्यक है। मीरा व शबरी ने मन को नियंत्रण में किया और उन्हें भगवान की प्राप्ति हुई, भगवान की प्राप्ति के लिए वे कहीं नहीं भटकती उन्होंने अपने आत्म निवेदन से भगवान को प्राप्त किया, अर्थात उन्होंने मन के उन सारे दरवाजों को बंद कर दिया जिससे कि उन्हें दूसरे स्थानों पर भटकना ही न पड़े। मन नियंत्रण में आ गया तो फिर भगवान की प्राप्ति हो गई। पूजा करना हमारी आदत और स्वभाव हो गया है, जब हम पूजा करते है तो मन भगवान में नहीं होता वह कहीं और भटक रहा होता है तो ऐसी पूजा का क्या अर्थ।
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