जगदलपुर29जून । बस्तर गोंचा पर्व के बाहुड़ा गोंचा पूजा विधान में बुधवार को भगवान श्रीजगन्नाथ स्वामी माता सुभद्रा व बलभद्र स्वामी के 22 विग्रहों को गुडिचा मंदिर-जनकपुरी, सिरहासार भवन से रथारूढ़ कर श्रीजगन्नाथ मंदिर के छ: खंडों 1. श्रीजगन्नाथ की बड़े गुड़ी, 2. श्रीमलकानाथ 3. श्रीअमायत मंदिर 4. श्रीमरेठिया मंदिर 5. श्रीभरतदेव मंदिर 6. श्रीकालिकानाथ मंदिर में स्थापित किया गया। गुरूवार को अषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी की पूजा संपन्न की गई, इसके साथ ही बस्तर गोंचा पर्व के नियत कार्यक्रम के अनुसार बस्तर गोंचा पर्व 2023 का आगामी वर्ष के लिए परायण हो गया। 360 घर आरण्यक ब्राहम्ण समाज के अध्यक्ष ईश्वर खंबारी ने बताया कि देवशयनी एकादशी के बाद सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, जनेउ, मुंडन, गृहप्रवेश इत्यादि पर विराम लग गया है, दीपावली के बाद देवउठनी एकादशी के पश्चात सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ होंगे।
श्रीजगन्नाथ मंदिर के पुजारी शुभांशु पाढ़ी ने बताया कि आज से अषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी पूजा विधान के साथ ही पुरुषोत्तम मास/चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है। गुरूवार को शुरू होने वाले पुरुषोत्तम मास/चातुर्मास इस वर्ष बहुत खास होने वाला है, इस वर्ष पुरुषोत्तम मास/चातुर्मास में दो सावन होने के कारण चार माह के स्थान पर पांच महीने का पुरुषोत्तम मास/चतुर्मास होगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन भगवान श्रीविष्णु/श्रीजगन्नाथ सृष्टि के संचालन का भार भगवान शिव को सौंपकर क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं।
यह चार माह का होता है, जिसके वजह से इसे पुरुषोत्तम मास/चतुर्मास कहते हैं। भगवान श्रीविष्णु/श्रीजगन्नाथ के योग निद्रा में रहने के दौरान मांगलिक कार्यों में उनका आशिर्वाद उपलब्ध नहीं होता। देवशयनी एकादशी के बाद सभी शुभ कार्यों जैसे विवाह, जनेउ, मुंडन, गृहप्रवेश इत्यादि पर विराम लग जाता हैे। गणेश चतुर्थी, कृष्ण जन्माष्टमी, नवरात्रि व दशहरा सहित दीपावली जैसे धार्मिक पर्व चातुर्मास के दौरान मनाये जाते हैं। दीपावली के बाद देवउठनी एकादशी के पश्चात ही सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ होंगे।
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