Raigarh News : केलो संरक्षण अभियान शुरू

रायगढ़ ,26 अप्रैल । जिले में नदियों के संरक्षण की दिशा में विशेष पहल की है। ‘केलो है तो कल है’ के संकल्प के साथ केलो नदी के संरक्षण के अभियान की शुरूआत की जा चुकी है। जिसके अंतर्गत एक वृहत प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। इसमें केलो नदी के प्रवाह मार्ग तथा इसके किनारे बसे गांवों में क्षेत्र एवं नरवा उपचार के तहत कार्य किया जाना है। इसी कड़ी में अब आगे 27 अप्रैल को केलो और मांड नदी संरक्षण के तहत केलो नदी के उद्गम से महानदी में विलय तक जिले के सभी ग्राम पंचायतों में नदी संरक्षण हेतु विशेष अभियान चलाया जाएगा। अभियान के अंतर्गत लैलूंगा, तमनार, रायगढ़ एवं पुसौर विकासखण्ड के जिन पंचायतों से होकर नदी गुजरती है, उन पंचायतों में नदी संरक्षण कार्यों को आगे बढ़ाया जाएगा। कार्यों को सामूहिक अभियान के रूप में संचालित किया जाएगा। 

अभियान में ग्रामीण जनों की भागीदारी, महिला समूह के महिलाओं, राजीव मितान क्लब के सभी सदस्यों को शामिल किया जाएगा। जिला पंचायत के नरवा संवर्धन के प्रभारी अधिकारी श्री आशुतोष श्रीवास्तव ने बताया कि सभी गांवों में नदी के किनारे मनरेगा से कार्य स्वीकृत कराया जा सकता है। मुख्य नदी के जलग्रहण क्षेत्र में ड्रेनेज नालों के लिए यह योजना स्वीकृत की जा सकेगी। एरिया ट्रीटमेंट के काम भी कराये जायेेंगे, जिससे जल एवं मृदा संरक्षण सुनिश्चित हो सके। क्षेत्र में पुरानी संरचनाओं के जीर्णोद्धार के कार्य भी किए जायेंगे, ताकि वे भी जल संरक्षण के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके।  

लैलूंगा में 25 कि.मी. के एरिया में बन चुका है प्रोजेक्ट

डीपीआर के अनुसार एरिया और नरवा ट्रीटमेंट किया जाएगा। इसके लिए शुरूआती 25 कि.मी.के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया जा चुका है। जिससे नदी के तटों का कटाव, गाद जमा होना, बहाव में कमी, घटता भू-जल जैसी समस्याओं को दूर किया जा सके। इसमें नरवा ट्रीटमेंट के लिए ब्रशवुड चेक, लूज बोल्डर चेक, गेबियन स्ट्रक्चर, चेक डैम तथा स्टॉप डैम का निर्माण किया जाएगा। एरिया ट्रीटमेंट के तहत विभिन्न स्ट्रक्चर जैसे कंटूर ट्रेंच, पर्कोलेशन टैंक, स्टेटगार्ड ट्रेंच साथ ही ढलान के मुताबिक विभिन्न प्रजाति के पौधों और वृक्षों का प्लांटेशन किया जाएगा। केलो नदी के पुनरुद्धार के लिए वॉटरशेड के रिज टू वैली कांसेप्ट से काम किया जाएगा। इसमें चोटी पर नदी के उद्गम से लेकर नीचे की ओर जाने वाले नदी की लाइनिंग को जोड़ा जाएगा। इसमें पूरे क्षेत्र को ढलान के अनुसार अलग-अलग भागों में बांटा गया है। जिसमें बहाव को नियंत्रित करने तथा जल को स्टोर करने के लिए अलग-अलग उपाय किए जायेंगे।