विलुप्त हो रही दुर्लभ औषधीय प्रजाति और मोटे अनाज को बचाने डा. वीणा सत्य कर रहीं जागरुक

बड़वानी। बड़वानी जिले की पर्यावरणविद् 57 वर्षीय डा. वीणा सत्य ने पश्चिमी मध्यप्रदेश के सतपुड़ा के घने जंगलों में पाई जाने वाली विलुप्त हो रही औषधीय प्रजातियों को रिसर्च कर उन्हें सहेजने का बीड़ा उठाया है। इनको अपने घर के आंगन और शासकीय महाविद्यालय के बगीचे में लगाकर संरक्षण करने के साथ ही महत्ता बता रही हैं, वहीं पश्चिम निमाड़ में दूरस्थ ग्रामीण अंचल में मिलने वाले मोटे अनाज की किस्मों को भी सहेजा है। इन औषधियों व मोटे अनाज की किस्मों को लेकर अब तक करीब पांच हजार लोगों को जागरूक कर चुकी हैं।

अग्रणी महाविद्यालय की पर्यावरणविद्, शिक्षाविद् और ईको क्लब की सदस्य डा. सत्य के अनुसार सतपुड़ा के घने जंगल में पाई जाने वाले दुर्लभ औषधीय पौधों और मोटे अनाज का पर्यावरणीय, सामाजिक व धार्मिक कार्यों में विशेष महत्व है। बड़वानी जिले के साथ ही पश्चिम मध्य प्रदेश के अन्य जिलों धार, खरगोन, आलीराजपुर, पचमढ़ी एवं महाराष्ट्र सीमा के तोरणमाल आदि क्षेत्रों की औषधीय संपदा और मछली मारक पौधों, स्पर्श चिकित्सा में उपयोगी, गर्भ निरोधक पौधों, आलीराजपुर जिले के देव वनों और इनमें संरक्षित पौधों तथा हर्बल पेस्टिसाइड पर भी शोध कार्य किया है। उनके 20 शोध पत्र विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। उनके द्वारा 18 राष्ट्रीय और 17 अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध पत्र प्रस्तुत किए गए हैं। 10 संगोष्ठियों में वे विषय विशेषज्ञ के रूप में पर्यावरण और जैव विविधता संरक्षण पर व्याख्यान दे चुकी हैं।

इन औषधीय पौधों को सहेजा

डा. सत्य ने जंगल में विलुप्त हो रही प्रजातियों जैसे केव कंद (त्वचा रोग के लिए उपयोगी), जंगली केला (पागलपन के इलाज के लिए), गूगल (कोलेस्ट्रोल और शुगर नियंत्रण), गजपिपली, सर्पगंधा (उच्च रक्तचाप के इलाज के लिए), ब्राह्मी बूटी (स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए), अन्तमूल (अस्थमा के लिए), काली हल्दी (श्वांस रोगों के लिए), शतावरी (दुग्ध वृद्धि के लिए), सफेद गुंज, गुडमार (मधुमेह के इलाज के लिए) आदि को शासकीय महाविद्यालय के औषधीय उद्यान और अपने घर के आंगन में लगाकर इनका संरक्षण करने के साथ ही पर्यावरणीय, सामाजिक व धार्मिक कार्यों में महत्व बता रही है। इसके साथ ही विलुप्तप्राय प्रजातियों जैसे पाडर, कुल्लू, श्योनक, तीनस, सीता अशोक, कनकचंपा, हर्रा, गधापलाश, कुम्भी, हल्दू, धावडा, मालकांगनी आदि को भी महाविद्यालय के वानस्पतिक उद्यान में संरक्षित किया है।

डा. सत्य जैव विविधता के संरक्षण के लिए वन विभाग के साथ, मध्य प्रदेश बायोडायवर्सिटी बोर्ड और छत्तीसगढ़ बायोडायवर्सिटी बोर्ड के साथ भी कार्य कर रही हैं। उनके संरक्षण के कार्यों के लिए महाविद्यालय को राज्य स्तरीय बायोडायवर्सिटी पुरस्कार और जिले का ग्रीन चैंपियन अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है। पर्यावरण संरक्षण के लिए वे पर्यावरण नियोजन और प्रबंधन संस्थान, भोपाल (ईपीसीओ) के साथ महाविद्यालय के ईको क्लब समन्वयक के रूप में कार्य कर रही हैं। ऊर्जा संरक्षण, जल संरक्षण, तथा पर्यावरण संरक्षण पर विद्यार्थियो को जागरूक करने के लिए कार्यशालाएं, सेमिनार, पोस्टर, क्विज, निबंध, स्लोगन प्रतियोगिताएं आदि आयोजित की हैं।

पृथ्वी दिवस, बालिका दिवस, और विश्व जल दिवस पर एप्को द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में व्याख्यानों से पूरे राज्य के ईको क्लब विद्यार्थियों, शिक्षकों व प्राध्यापकों को जागरूक किया। उनके शोध विद्यार्थी भी संरक्षण की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में ज्वार 60, मक्का 26, चावल 50 और मोटे अनाज (श्री अन्न) की 28 देशी किस्मों पर शोध कार्य कर इनके बीजों को संरक्षित किया है। खुद का अनाज बैंक भी बनाया है।

पर्यावरणविद डा. वीणा सत्य द्वारा शासकीय अग्रणी महाविद्यालय में विलुप्तप्राय विशेष औषधीय पौधों का उद्यान तैयार कर नवाचार किया गया है। उनके प्रयासों के माध्यम से हजारों विद्यार्थी व ग्रामीण जागरूक हुए हैं। महाविद्यालय द्वारा आगे भी सतपुड़ा के जंगल में रिसर्च के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। -डा. एनएल गुप्ता, प्राचार्य शासकीय अग्रणी महाविद्यालय, बड़वानी