रायपुर ,25 फरवरी । वर्तमान शिक्षा से संस्कार गायब हो गये है तो यह समाज कैसे बचेगा और परिवार की बुनियाद कैसे टिकी रहेगी। शिक्षा जितनी जरूरी है उतना ही संस्कार भी पहले शिक्षा के साथ-साथ स्कूलों में संस्कार भी सिखाये जाते थे आज की शिक्षा से लोग ज्ञान बहुत प्राप्त कर रहे है धन भी बहुत कमा रहे है लेकिन संस्कार गायब हो गए है। जब संस्कार ही नहीं बचेंगे तो इस समाज का क्या हाल होगा और इसके दोषी और कोई नहीं हमी लोग होंगे। हम अपने बच्चों को ज्ञान की शिक्षा दें साथ ही साथ संस्कार की भी शिक्षा देनी होगी। आज बढ़-चढ़कर रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जा रहा है यह अच्छी बात है, रक्तदान से किसी का जीवन बचाया तो जा रहा है लेकिन हम घर में अपने बढ़े-बुजुर्गों और माता-पिता को वक्त नहीं दे पाते। ज्यादा अच्छा है कि रक्त के बजाए उनके लिए हम अपना वक्त दान करें। वक्तदान का मीडिया में प्रचार नहीं हो सकता जबकि रक्तदान का बहुत प्रचार-प्रसार होता है और आज का मनुष्य यही चाहता है। बचे-खुचे संस्कारों को टीवी धारावाहिक वाले सत्यानाश करने पर लगे हुए है।
संत शंभूशरण लाटा ने भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक और उनके वन गमन को लेकर ये बातें श्रद्धालुओं को बताई। उन्होंने कहा कि आज मनुष्य को जो सुख उसे मिल रहा है उसका उपभोग करने के बजाए कल के सुख को प्राप्त करना चाहता है और इसलिए वह दुखों को ओढ़ लेता है। उसे यह नहीं मालूम कि जो सुख वह कल प्राप्त करना चाहता है वह उसके भाग्य में है भी की नहीं। हमें दूसरों के सुखों को देखकर जलन होती है और यही जलन हमारे दुखों का कारण बनता है। इस जलन को भगवान के भजन के अलावा मिटाने का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। दूसरों के सुख में शामिल होकर उसका आनंद लेने वाले बहुत कम है। शंभूशरण लाटा ने बताया कि कैकयी रुपवान, बुद्धिमान और बलवान तीनों ही है इसलिए वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ जाती है। एक ओर कैकयी का रुप निंदनीय है तो दूसरी ओर वंदनीय भी है।
कैकयी राम राज्य की जननी है, राम राज्य की स्थापना के लिए उसने कलंक अपने सिर पर लगा लिया। दूसरी ओर निंदनीय इसलिए कि उसने राम को 14 साल के लिए वनवास भेज दिया और पुत्र मोह में फंस गई। भगवान श्रीराम और रावन के चरित्र का संक्षिप्त में वर्णन करते हुए संत लाटा ने कहा कि मनुष्य को जीवन में यह तय करना चाहिए कि उसे राम के चरित्र को अपने जीवन में उतारना है या रावण के। राम का चरित्र घर में बड़े-बुजुर्गों का आदर कैसे किया जाता है, उनका सम्मान कैसे करना चाहिए, दुख के समय में कैसा व्यवहार होना चाहिए यह हमें पता चलता है। वहीं रावण अपने पिता को भी नहीं बख्शता। लेकिन आज मनुष्य की यह दुविधा है कि आधा राम और आधा रावण के चरित्र को अपना रहा है जिसके कारण उसकी मुश्किलें बढ़ गई है।
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