अंबिकापुर,5सितम्बर। आचार्य देवकीनंदन ठाकुर ने कहा है कि देश को विवेकशील बच्चों की जरूरत है क्योंकि विवेकशील वह होता है जिसे सिर्फ खाने,कमाने की चिंता नहीं होती। उसे माता-पिता,परिवार,समाज और देश की चिंता होती है। विवेकशील और विवेकवान वह होता है जो सिर्फ कमाने खाने की चिंता नहीं करता। विवेकवान वह है जिसे कुछ मिले न मिले, जो सोचे कि मेरा नाश न हो जाए, यहां भी मैं सम्मान के साथ जीयूं और ऊपर भी अपने ठाकुर जी के साथ सम्मान से मिल सकूं। ऐसे जीवन जीने की कला जो तलाशता रहे वही विवेकवान है।
मनकापुर के होटल ग्रैंड बसंत परिसर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन आचार्य देवकीनंदन ठाकुर ने सप्तम दिवस की शुरुआत विश्व शांति की प्रार्थना के साथ की।उन्होंने श्रद्धालुओं को – मैं तो तेरी हो गई श्याम, शोर है गली-गली भजन का श्रवण कराया। कथा के संपूर्णतः दिवस एंव राधा अष्टमी के अवसर पर उन्होंने भक्तों को राधा अष्टमी महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं दी। आचार्य देवकीनंदन ठाकुर ने श्रद्धालुओं को मनुष्य के जीवन के सबसे बड़े संकट के बारे में बताया।उन्होंने कहा कि आखिर किस कारण मनुष्य बड़े संकट में फंस सकता है।उन्होंने मानव जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति का भी वर्णन किया एवं बताया कि आखिर कैसे मनुष्य अपने जीवन में सभी सुखों का भोग कर सकता है।
जीवन में मनुष्य को भगवत प्राप्ति कैसे होती है ? इस पर उन्होंने कहा कि ईश्वर जब हमारे ऊपर कृपा करते हैं तो भगवान हमें सत्संग प्राप्त करा देते हैं। सत्संग होना ये हमारे सदकर्मों का प्रभाव नहीं हमारे ठाकुर जी की कृपा का प्रभाव है। जब तक ठाकुर जी कृपा न करें तब तक सत्संग नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि इस बात को तो हम सभी जानते है कि आज के समय के माता-पिता भी यही चाहते है कि उनका बच्चा इंटेलिजेंट हो लेकिन इस खास विषय पर आचार्य देवकीनंदन ठाकुर ने भक्तों के सामने एक इंटेलिजेंट बच्चे और एक विवेकवान बच्चे के बीच अंतर साझा किया।उन्होंने कहा- आज कल बच्चे इंटेलिजेंट पैदा हो रहे हैं विकेकशील नहीं। इंटेलिजेंट सिर्फ खाने और कमाने के लिए ही होता है जिसे कोई मतलब भी नहीं रहता कि उसके मां-बाप उसके साथ हो या न हो। वह उसके बारे मे क्या सोचेंगें, उन्हें केवल नौकरी से मतलब है।लेकिन विवेकवान कौन है जिस कुछ मिले न मिले, जो सोचे कि मेरा नाश न हो जाए, यहां भी मैं सम्मान के साथ जीयूं और ऊपर भी अपने ठाकुर जी के साथ सम्मान से मिल सकूं। ऐसे जीवन जीने की कला जो तलाशता रहे वही विवेकवान है। इस देश को अभिमान बच्चों की जरूरत है जो माता पिता के साथ संस्कार युक्त जीवन को लेकर आगे बढ़े।उन्होंने कहा कि हर रो व्यक्ति अपने जीवन में सफल होने का निरंतर प्रयास करता है लेकिन असल जीवन में सफल होने का अर्थ नहीं जा पाता जिसे लेकर उन्होंने भक्तों को यह भी बताया कि जीवन में कौन सबसे सफल व्यक्ति है।समापन दिवस पर आचार्य देवकीनंदन ठाकुर के सानिध्य में कथा श्रवण करने हेतु बड़ी संख्या में भक्त पहुंचें जिस दौरान भक्तों ने कथा के रस श्रवण के साथ-साथ अनेक भजनों का भी आनंद प्राप्त किया। श्रीमद् भागवत कथा के समापन दिवस पर भक्तों के निष्काम भक्तिभाव के संग भागवत विदाई की गई। यह अद्भुत नजारा था जिसके साथ थी नासिर शहरवासी बल्कि दूसरे प्रांतों से पहुंचे श्रद्धालु भी बने।आचार्य देवकीनंदन ठाकुर देश के प्रख्यात कथावाचक है। परिवार, समाज,राष्ट्र के साथ संस्कार युक्त जीवन को लेकर बेबाक टिप्पणी करने वाले आचार्य देवकीनंदन ठाकुर ने आठ दिनों तक समूचे सरगुजा वासियों को बांधे रखा था। श्रीमद् भागवत कथा के समापन दिवस पर उनके दर्शन और कथा श्रवण करने के लिए सर्वाधिक भीड़ उमड़ी थी।इस वृहद आयोजन से शहर में भक्ति और उल्लास का माहौल बना हुआ था।
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