मध्यस्थता अधिनियम को बदलने का किसी को अधिकार नहीं : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

बिलासपुर: जिला और सत्र न्यायाधीश आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 34 के अंतर्गत किसी आवेदन पर निर्णय करते समय अधिनिर्णय को परिवर्तित करने का कोई अधिकार नहीं है. इस आशय की टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने हाईवे में अधिग्रहित कृषि भूमि के मुआवजे के संबंध में याचिकर्ताओं की अपील निराकृत कर दी.

एनएचआई ने बिलासपुर रायपुर फोरलेन सड़क के लिए 31 मई 2011 में एक अधिसूचना जारी की थी. इसके बाद बलौदाबाजार जिले के कई किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई. इसमें 23 लाख 76 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर का मुआवजा निर्धारित किया गया. इसे बाद में अपर्याप्त मानते हुए किसानों ने कमिश्नर रायपुर संभाग के यहां आवेदन दिया. यहां से राहत नहीं मिलने पर यह लोग जिला न्यायालय की शरण में पहुंचे. बलौदाबाजार न्यायालय ने मुआवजे के आदेश को रूपांतरित कर दिया. अब इस निर्णय के खिलाफ किसान भागवत सोनकर, तुलसीराम, रामजी देवांगन समेत 23 याचिकाकर्ता और एनएचआई दोनों ने हाईकोर्ट में अपील की.

इस मामले में एनएचआई की ओर से एडवोकेट धीरज वानखेड़े ने पैरवी की. सभी पक्षों की सुनवाई के बाद जस्टिस दीपक कुमार तिवारी ने अधीनस्थ न्यायालय का आदेश अपास्त कर दिया. हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 34 के अंतर्गत जिला न्यायाधीश इसी आवेदन पर निर्णय करते समय अधिनियम को अपास्त नहीं कर सकता या उसकी पुष्टि कर सकता है. उसे इसे परिवर्तित करने का कोई अधिकार नहीं है. कोर्ट ने सुनवाई में यह टिप्पणी करते हुए याचिका निराकृत कर दिया.