राजवाड़ा में आज भी बंधती है होलकरकालीन परंपराओं की गुड़ी

इंदौर 2 अप्रैल (वेदांत समाचार)। किसी समय मराठा साम्राज्य का सूबा और बाद में होलकर स्टेट होने से इंदौर में गुड़ी पड़वा का विशेष महत्व है। इस दिन होलकर राजपरिवार द्वारा की जाने वाली पूजा को देखने लोग दूर-दूर से आते थे। प्रतिभाओं का सम्मान भी किया जाता था।

होलकर शासनकाल में गुड़ी पड़वा पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक आयोजन होते थे। राजपरिवार द्वारा तीन जगह गुड़ी बांधी जाती थी। हाथी-घोड़ों को सोने-चांदी के आभूषणों से सजाकर पूजा की जाती थी। वक्त के साथ काफी बदलाव आया हो लेकिन आज भी मल्हारी मार्तंड मंदिर में राजकीय परंपरा निभाई जाती है। होलकर राजपरिवार गुड़ी के लिए साड़ी पहुंचाता है और पुजारी सूर्योदय के समय पूजन करते हैं। मंदिर के पुजारी पं. लीलाधर वारकर बताते हैं कि आज भी गुड़ी पड़वा की पूजा का खर्च राजपरिवार द्वारा निर्मित खासगी ट्रस्ट वहन करता है। हालांकि अब चांदी के बजाय लकड़ी के दंड पर गुड़ी बांधी जाती है लेकिन आज भी उस पर चांदी का कलश लगाया जाता है। गुड़ी के साथ राजचिन्ह, राजदंड, कुलदेवता, ध्वज, गादी और पंचांग पूजन किया जाता है।

गुलाब जल से धोते थे राजवाड़ा को – इतिहासकार डा. गणेश मतकर के संग्रह से उनके बेटे सचिन मतकर ने बताया कि राजवंश द्वारा इस दिन मल्हारी मार्तंड मंदिर, दौलत की गादी और खासगी की गादी पर गुड़ी बांधी जाती थी। राजपरिवार के निवास और कार्यालयों पर नवध्वज फहराए जाते थे। गुड़ी पूजन के पहले राजवाड़ा और मंदिर को गुलाब जल से धोया जाता था। चांदी की 12 फीट लंबी छड़ी पर जरीदार साड़ी और चांदी का कलश लगाकर गुड़ी बांधी जाती थी। महाराज और रानी राजोपाध्याय के साथ पूजन करते थे। गौरीशंकर, मल्हारी मार्तंड, खासगी की गादी, दौलत की गादी, राजचिन्ह, राजदंड, जरी पटका व राजध्वज का पूजन किया जाता था।