250 साल पुराना है रायपुर में शीतला माता का मंदिर, बासी भोजन का लगता है भोग

रायपुर 24 मार्च (वेदांत समाचार)। छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती में बूढ़ेश्वर मंदिर के समीप 250 साल पुराना शीतला मंदिर है, जहां माता की पूजा पिण्डी रूप में की जाती है। अन्य देवियों की तरह प्रतिमा में कोई रंग, रूप नहीं है। माता पत्थर रूप में विराजित हैं।

मौसमी बीमारियों से मुक्त करके शरीर को शीतलता प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजने की मान्यता है। इसलिए माता को प्रसाद के रूप में ऐसा भोजन अर्पित किया जाता है जो शरीर को ठंडक पहुंचाता है। श्रद्धालु महिलाएं एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रखतीं हैं और दूसरे दिन सुबह वही ठंडा भोजन माता को भोग के रूप में अर्पित करतीं हैं।मंदिर के पुजारी पं.नीरज सैनी के अनुसार, सनातनी परंपरा में पूजे जाने वाले देव-देवियों में एकमात्र माता शीतला ही ऐसी देवी हैं, जिन्हें गरम भोजन अर्पित नहीं किया जाता। एक दिन पहले तैयार किया गया भोजन, जिसे बासी भोजन कहा जाता है, का भोग लगाया जाता है। ठंड भोजन जैसे, दही, छाछ, आटे से बनाया गया राब यानी सत्तू मुख्य रूप से भोग लगता है।

24 और 25 मार्च को पूजा24 मार्च को सप्तमी तिथि पर सुबह पांच बजे से मंदिर में भोग अर्पित करने के लिए महिलाओं की लाइन लगी रही। घंटों तक लाइन में लगने के बाद महिलाओं को पूजा करने का मौका मिला। वहीं 25 मार्च को अष्टमी तिथि पर भी पूजा की जाएगी।राजस्थानी समाज में पूजा के दिन नहीं जलता चूल्हा

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि पर राजस्थानी समाज की महिलाओं की भीड़ यहां उमड़ती है। बूढ़ापारा, सदरबाजार, सत्ती बाजार, ब्राह्मण पारा, लाखेनगर, सुंदरनगर, पुरानी बस्ती, ब्रह्मपुरी, कुशालपुर, प्रोफेसर कालोनी आदि इलाके से हजारों महिलाएं दो दिन तक माता को ठंडे भोजन का भोग लगाकर परिवार की सुख, समृद्धि और निरोगी काया की कामना करतीं हैं। जिस दिन महिलाएं शीतला माता को पूजतीं हैं, उस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाने की परंपरा का पालन किया जाता है।

पुजारी नहीं, महिलाएं स्वयं लगातीं हैं भोगयह एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें माता को भोग पुजारी नहीं, बल्कि महिलाएं अपने हाथों से लगाती हैंं। अपने हाथों से भोग अर्पित करने के लिए महिलाओं को लंबी लाइन में लगना पड़ता है।

शीतला अष्टमी पूजा को बासोड़ा के नाम से जाना जाता है। बासोड़ा यानी बासी भोज का भोग। कुछ इलाकों में इसे बासोरा पूजा भी कहते हैं।ठंडी तासीर वाले व्यंजनगुलगुला, दही बड़ा, हलवा, छाछ-दही से बनी राबड़ी, मूंग दाल की रोटी, चना आटे का सत्तू आदि ठंडक पहुंचाने वाले व्यंजन से भोग लगेगा।