हाई कोर्ट ने मप्र राज्य विद्युत नियामक आयोग से मांगा जवाब, दो सप्ताह की मोहलत दी

जबलपुर, 23 फरवरी (वेदांत समाचार)। हाई काेर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग काे नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया है। इसके लिए दो सप्ताह की मोहलत दी गई है। न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता टीकमगढ़ निवासी अधिवक्ता निर्मल लोहिया की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा। जबकि नियामक आयोग की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह खड़े हुए। उन्होंने जवाब के लिए समय दिए जाने पर बल दिया। हाई कोर्ट ने यह मांग मंजूर कर ली।

इससे पूर्व याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने दलील दी कि नियामक आयोग ने प्रदेश की बिजली कंपनियों की अपील को स्वीकार या निरस्त करने के मूल अधिकार के स्थान पर अनाधिकार चेष्टा करते हुए गलती सुधार के लिए वापस कैसे किया। नियामक आयोग अधिनियम की धारा-64 के तहत आयोग के पास तीसरा कोई विकल्प मौजूद ही नहीं है। इसके बावजूद ऐसी गलती आयोग की ओर से कर दी गई। इसी रवैये को याचिका के जरिये चुनौती दी गई है। नियामक आयोग अधिनियम की धारा-87 के तहत आयोग को पारदर्शिता से आदेश पारित करना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बिजली कंपनियों ने गजट नोटिफिकेशन से पूर्व अपील प्रस्तुत करने की बड़ी गलती कर दी थी, ऐसे में उसे अपील में सुधार की स्वतंत्रता देना सर्वथा अनुचित था।

आयुर्वेदिक पीजी पाठ्यक्रम में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण पर सुरक्षित किया आदेश : हाई कोर्ट ने आयुर्वेदिक पीजी पाठ्यक्रम में 27 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग, ओबीसी आरक्षण को चुनौती के मामले में दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी होने के साथ ही अपना आदेश सुरक्षित कर लिया है। प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू व न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की युगलपीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए लगा।

इस दौरान राज्य शासन की ओर से विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। उन्हाेंने बीएएमएस कोर्स की छात्रा द्वारा दायर याचिका का विरोध किया। दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी के मामले में महत्वपूर्ण आदेश पारित किया था। नौ जजों की बेंच ने साफ किया था कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत विशेष परिस्तिथियों में अधिक भी हो सकती है।वर्तमान में मध्य प्रदेश में वही विशेष परिस्तिथियों मौजूद है। जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया था, तब और अब आबादी का प्रतिशत बदल गया है। आज ओबीसी की आबादी 51 प्रतिशत हो चुकी है। ऐसे में उसे 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। हाई कोर्ट ने सभी बिंदुओं पर गौर करने के बाद अपना आदेश सुरक्षित कर लिया।