सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को महिला जज के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) को निर्देश दिया है कि वे इस्तीफा देने वाली महिला जज (Woman Judge) की बहाली को लेकर जल्द से जल्द कदम उठाएं. महिला न्यायाधीश ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) के आरोप लगाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मामले की परिस्थितियों में उनका इस्तीफा स्वैच्छिक नहीं माना जा सकता है. इसलिए उनका इस्तीफा स्वीकार करने के हाईकोर्ट के फैसले को रद्द किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज (Additional District Judge) के रूप में बहाल करने का आदेश दिया है. लेकिन शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वह अपने बैकवेज (पिछले वेतन) की हकदार नहीं होंगी. हालांकि, उन्हें उनकी सेवा के दौरान अब सभी लाभ दिए जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट महिला जज (ADJ) द्वारा दायर रिट याचिका में फैसला सुना रही थी. इस याचिका में जज ने इस आधार पर अपनी बहाली की मांग की थी कि उन्होंने दबाव में आकर अपना इस्तीफा हाईकोर्ट को सौंपा था.
हाईकोर्ट जज के खिलाफ लगाए थे यौन उत्पीड़न के आरोप
1 फरवरी को इस मामले में न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को याचिकाकर्ता को बहाल करने पर विचार करने का सुझाव दिया था. हालांकि, हाईकोर्ट के फुल कोर्ट ने फैसला किया कि उनका (महिला जज) अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता है. फैसला सुनाने से पहले जस्टिस गवई ने कहा, ‘हम प्रतिनिधित्व को खारिज करने वाले फुल कोर्ट के संकल्प की तह में नहीं गए हैं. हमने स्वतंत्र रूप से मौजूद रिकॉर्ड की जांच की है. स्थानांतरण आदेशों का आकलन किया है.’
हाईकोर्ट के जिस न्यायाधीश के खिलाफ महिला जज ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, उन्हें दिसंबर 2017 में आरोपों की जांच करने वाली राज्यसभा द्वारा नियुक्त समिति ने दोषी नहीं पाया था. महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि हाईकोर्ट ने 15 दिसंबर 2017 की न्यायाधीशों की जांच समिति की रिपोर्ट के स्पष्ट निष्कर्ष की अनदेखी की. रिपोर्ट में कहा गया था, ‘महिला ने असहनीय परिस्थितियों के चलते अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के पद से 15 जुलाई 2014 को इस्तीफा दिया और उसके पास अन्य कोई विकल्प नहीं था.’ याचिका में कहा गया, ‘न्यायाधीशों की जांच समिति ने कहा था कि याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल किया जाए क्योंकि उसने दबाव में इस्तीफा दिया था.’
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