एयर इंडिया (Air India) को टाटा ग्रुप (Tata Group) ने खरीद लिया है. संभव है कि आने वाले समय में इसे टाटा संस को ब्रैंड रॉयल्टी चुकानी पड़े. आखिर क्या है यह पूरा मामला, आइए इसके बारे में डिटेल में जानते हैं. आपको यह तो पता ही होगा कि एयर इंडिया अब सरकार की नहीं रही. मतलब एयर इंडिया टाटा ग्रुप की कंपनी बन गई है, लेकिन अब खबर ये आ रही है कि एयर इंडिया को टाटा ब्रांड इस्तेमाल करने के लिए टाटा संस को रॉयल्टी चुकानी पड़ सकती है. अब आप ये सोच रहे होंगे कि ये क्या मामला है. जब एयर इंडिया को टाटा ग्रुप ने ही खरीद लिया है, तो उसे अपनी ही पैरेंट कंपनी को रॉयल्टी क्यों चुकानी होगी. आपको इसके बारे में बताते हैं.
यह है इसकी वजह
आपका सवाल बिल्कुल सही है. इसके पीछे वजह दरअसल यह है कि टाटा संस ने एयर इंडिया की खरीदारी की बोली अपनी एक सब्सिडियरी टैलेस प्राइवेट लिमिटेड के जरिए लगवाई थी. यानी एयर इंडिया तकनीकी तौर पर टैलेस के हाथ आई है तो इतनी बात आपको समझ आ गई होगी. अब आगे बढ़ते हैं और रॉयल्टी के मसले पर आते हैं. एयर इंडिया के पूरी तरह से टैलेस के हाथ में पहुंचने के बाद जब नई एयरलाइंस कामकाज शुरू करेगी, तो वे टाटा ब्रांड नाम का इस्तेमाल करेगी.
अब टाटा संस जो कि टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है. वह चाहती है कि ये नई एयरलाइंस टाटा ब्रांड का इस्तेमाल करने के बदले में उसे पैसा दे. एयर इंडिया के टाटा ग्रुप को ट्रांसफर की औपचारिकताएं इस महीने के आखिर तक पूरी हो जाएंगी. इन्हीं औपचारिकताओं में ब्रांड रॉयल्टी चुकाने की व्यवस्था का भी जिक्र है, लेकिन, यहां से एक और सवाल भी आपके मन में पैदा हो रहा होगा कि आखिर विस्तारा और एयर एशिया में भी तो टाटा ग्रुप की हिस्सेदारी है, तो क्या वे भी टाटा संस को कोई रॉयल्टी चुकाती हैं.
तो इसका जवाब है, नहीं. इसके पीछे वजह यह है कि विस्तारा और एयर एशिया क्योंकि टाटा ब्रांड का इस्तेमाल ही नहीं करतीं, ऐसे में उनके रॉयल्टी चुकाने की भी बात पैदा नहीं होती है. लेकिन एक सवाल और पैदा होता है कि आखिर टाटा संस अपनी ही कंपनियों से ब्रांड इस्तेमाल करने के लिए रॉयल्टी क्यों लेती है. इसका जवाब ग्रुप की टाटा ब्रांड इक्विटी एंड बिजनेस प्रमोशन (TBEBP) स्कीम में छिपा हुआ है. इस स्कीम के तहत टाटा संस ग्रुप की कंपनियों से रॉयल्टी लेती है.
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