नई दिल्ली । ओमिक्रोन वायरस के प्रसार के साथ वैक्सीन पर सवाल उठने लगे है कि क्या इस वायरस पर वैक्सीन काम नहीं कर रही है ? आखिर वैक्सीन की दो डोज ले चुके लोग क्यों संक्रमित हो रहे हैं ? इसकी क्या बड़ी वजह है ? क्या सच में कोरोना वैक्सीन ओमिक्रोन पर प्रभावशाली नहीं है ? वैक्सीन लेने के बाद भी लोग कोरोना संक्रमित क्यों हो रहे हैं ? क्या वैक्सीन की दो डोज ले चुके लोग कोरोना वायरस से सुरक्षित है ? वैक्सीनेशन की प्रक्रिया के क्या लाभ हैं। आइए जानते हैं कि इन तमाम सवालों पर आखिर विशेषज्ञों की क्या राय है। वह वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को कितना उपयोगी मानते हैं।
1- गाजियाबाद स्थित यशोदा अस्पताल के एमडी पीएन अरोड़ा का कहना है कि कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाने वाले लोगों में वैक्सीन लगवा चुके लोगों की तुलना में संक्रमण का खतरा दस गुना और मौत का खतरा 20 गुना ज्यादा होता है। उन्होंने कहा कि ओमिक्रोन से संक्रमित मरीज ने अगर वैक्सीन की दो डोज ले रखी है तो उसके अस्पताल में भर्ती होने की संभावना बहुत कम होती है। उन्होंने कहा कि यह धारण कुछ लोगों में फैल रही है कि वैक्सीन लेने के बाद भी लोग बीमार पड़ रहे हैं, इसलिए वैक्सीन की क्या उपयोगिता है। यह सोचना पूरी तरह से गलत है।
2- डा. अरोड़ा का कहना है कि दुनियाभर में कोरोना वैक्सीन को उपलब्ध हुए एक वर्ष से ज्यादा का वक्त हो चुका है। उन्होंने कहा कि समय बीतने के साथ वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा का स्तर कम होता जाता है। वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा अलग-अलग होती है। इसका प्रभाव प्रत्येक उम्र के वर्ग पर और कम इम्युनिटी वाले लोगों पर अलग-अलग होता है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि भारत सरकार ने बुस्टर डोज का प्रावधान किया है। सरकार ने यह तय किया है कि प्रारंभ में किन लोगों को बुस्टर डोज की जरूरत होगी।
3- भारत में कोरोना प्रोटोकाल का पूरी कठोरता से पालन करना होगा। इतना ही नहीं पर्व और त्योहारों पर भी इन नियमों की अनदेखी नहीं करना चाहिए। उन्होंने जनवरी में आने वाले पर्व और होली को लेकर भी आगाह किया। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए भारत सरकार की गाइड लाइन को गंभीरता से पालन करना चाहिए। ऐसा नहीं करने से ओमिक्रोन का संक्रमण बहुत तेजी से होगा।
4- डा. अरोड़ा का कहना है कि कोरोना से बचाव की जो पहले दौर की वैक्सीन आई हैं उनका मकसद फिलहाल बीमारी के गंभीर खतरों को कम करना है, उसे सीमित करना है, यानी ऐसा ना हो कि संक्रमण हुआ भी तो अस्पताल जाने की नौबत आ जाए, या संक्रमण जानलेवा बन जाए। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिसंबर में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने भी संसद में कहा था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो कि मौजूदा वैक्सीन ओमिक्रोन वेरिएंट पर काम नहीं करती।
5- वैक्सीन कोरोना वायरस के सामान्य लक्षण, हल्के लक्षण या बिना लक्षण वाले मामलों के मुकाबले गंभीर मामलों में ज्यादा सुरक्षा प्रदान करती है। यह संक्रमण को रोकती ही नहीं है, बल्कि यह बच्चों, गर्भवती महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों या किसी ना किसी बीमारी से जूझते लोगों में संक्रमण से हो सकने वाली गंभीरता को कम करती है। इसका मतलब ये हुआ कि टीकों का मुख्य लक्ष्य संक्रमण को रोकना नहीं बल्कि शरीर में कोरोना संक्रमण से हुए नुकसान को कम करना है। उन्होंने कहा कि फ्लू को रोकने वाले टीके भी ऐसे ही काम करते हैं, जिनका दशकों से इस्तेमाल हो रहा है।
6- व्यक्ति को संक्रमित करने के बाद कोई नया वैरिएंट उसे कैसे प्रभावित करता है यह जानने में कई दिन का वक्त लग जाता है। अभी तक हमें सिर्फ यह ज्ञात है कि ओमिक्रोन, डेल्टा से अधिक संक्रामक है। यह बेहद चिंता का विषय है, क्योंकि इससे अस्पतालों पर दबाव बढ़ सकता है। इसके अलावा एक और मुश्किल यह भी है कि अधिक संक्रामक होने के कारण ये वायरस अधिक लोगों के शरीर में होगा तो इसके म्यूटेट करने की संभावना भी अधिक होगी यानी और नए वैरिएंट पैदा हो सकते हैं जो खतरा बन सकते हैं। इस पर कंट्रोल करने के लिए वैक्सीन बेहद जरूरी है।
भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं ओमिक्रोन मरीजों की संख्या
गौरतलब है कि दुनियाभर में कोरोना वायरस के मामलों में फिर से तेजी देखी जा रही है। अभी जारी लहर के लिए सबसे बड़ी वजह वायरस के ओमिक्रोन वेरिएंट को बताया जा रहा है। यह वैरिएंट सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में मिला। इस वैरिएंट की वजह से अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों में रिकार्ड संख्या में संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं। भारत में भी नए मामलों की संख्या तेजी बढ़ रही है। खास बात यह है कि यह स्थिति तब है जब भारत समेत सारी दुनिया में ज्यादा से ज्यादा लोगों के टीकाकरण की कोशिश जारी है। बड़ी आबादी को टीके लग भी चुके हैं, लेकिन फिलहाल ऐसे भी मामले आ रहे हैं, जहां टीका लगवा चुके लोगों को भी संक्रमण हो रहा है।
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