इंजेक्शन लगवाने से पहले कभी न कभी ऐसा जरूर हुआ होगा कि आपने सुई लगवाने के लिए हाथ बढ़ाया होगा, लेकिन डॉक्टर ने इसे कमर पर लगाने की बात कही होगी. कभी सोचा है कि डॉक्टर्स इंजेक्शन लगाने की जगह क्यों बदल देते हैं. इसकी भी एक वजह है. जानिए डॉक्टर्स ऐसा क्यों ऐसा करते हैं, इसके पीछे क्या विज्ञान है…
एक्सपर्ट कहते हैं, इंजेक्शन कई तरह के होते हैं. जैसे- इंट्रावेनस, इंट्रामस्क्युलर, सबक्यूटेनियस और इंट्राडर्मल. इसमें मौजूद अलग-अलग दवाओं के कारण तय होता है कि इंजेक्शन कहां लगाया जाएगा. अगर इंट्रावेनस इंजेक्शन की बात करें तो इसे हाथों में लगाया जाता है. इस इंजेक्शन के जरिए दवा सीधे वेन्स तक पहुंचाई जाती है. वेन्स में दवा पहुंचने पर दवा सीधे ब्लड में मिल जाती है.
अब बात करते हैं इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन की. नाम से ही स्पष्ट है कि यह इंजेक्शन मांसपेशियों में लगाया जाता है. कुछ ऐसी दवाएं होती हैं, जिसे मांसपेशियों के जरिए शरीर में पहुंचाया जाता है, इनके लिए इंट्रामस्क्यूलर इंजेक्शन लगाया जाता है. इनमें एंटीबायोटिक और स्टेरॉयड के इंजेक्शन शामिल होते हैं. यह इंजेक्शन आमतौर पर कूल्हे वाले हिस्से में लगाया जाता है. इसे जांघ में भी लगाया जा सकता है.
तीसरी कैटेगरी है सबक्यूटेनियस इंजेक्शन की. इस इंजेक्शन के जरिए इंसुलिन और गाढ़े खून को पतला करने वाली दवाएं दी जाती हैं. इस इंजेक्शन को स्किन के ठीक नीचे और मसल टिश्यूज से ठीक उपर वाले हिस्से में लगाया जाता है. दोनों इंजेक्शन के मुकाबले सबक्यूटेनियस को लगवाने में कम दर्द महसूस होता है. इसे या तो हाथ और जांघ के ऊपरी हिस्से में लगाया जाता है या पेट में लगाया जाता है.
चौथी कैटेगरी होती है, इंटरडर्मल. इसे स्किन के ठीक नीचे लगाया जाता है. इसलिए इंटरडर्मल इंजेक्शन को कलाई के पास वाले हिस्से में लगाया जाता है. इस इंजेक्शन का इस्तेमाल टीबी और एलर्जी की जांच करने में किया जाता है. इस तरह बीमारी और दवा से ही तय होता है कि इंजेक्शन कहां पर लगाया जाना है.
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