कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नारा को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा- बीजेपी का असली नारा, छवि बचाओ, फोटो छपाओ. दरअसल बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao, Beti Padhao) केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना. इस स्कीम की शुरुआत 2015 में हुई थी.
देश की बेटियों को इस योजना से कितना लाभ हुआ, इस पर हर किसी की अपनी राय हो सकती है. लेकिन इस योजना पर सरकार ने खर्च कितना किया, उसे लेकर एक रिपोर्ट आई है. इसके मुताबिक बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना का लगभग 80 फीसदी फंड सरकार ने इसके प्रचार-प्रसार पर खर्च कर डाला.
80 फीसदी पैसे प्रचार पर हुआ खर्च- रिपोर्ट
जानकारी के मुताबिक, महिलाओं के सशक्तिकरण पर संसदीय समिति की लोकसभा में पेश एक रिपोर्ट में ये बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि 2016-2019 के दौरान योजना के लिए जारी किए गए कुल 446.72 करोड़ रुपये में से 78.91 फीसदी धनराशि सिर्फ मीडिया के जरिये प्रचार पर खर्च की गई. BJP सांसद हीना विजयकुमार गावित की अध्यक्षता में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के विशेष संदर्भ के साथ शिक्षा के जरिये महिला सशक्तिकरण के शीर्षक के तहत इस रिपोर्ट को गुरुवार, 9 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी 2015 में बेटी बचाओ योजना शुरू की थी. योजना देशभर के 405 जिलों में लागू है. इसका उद्देश्य गर्भपात और गिरते बाल लिंग अनुपात से निपटना है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, 1000 लड़कों पर 918 लड़कियां हैं. रिपोर्ट तैयार करने वाली समिति का कहना है कि 2014-2015 में योजना के शुरू होने के बाद से कोविड प्रभावित सालों (2019-20 और 2020-21) को छोड़कर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के तहत कुल आवंटन 848 करोड़ रुपये था. इस दौरान राज्यों को 622.48 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई थी. लेकिन इनमें से सिर्फ 25.13 फीसदी धनराशि (156.46 करोड़ रुपये) राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा खर्च की गई.
योजना के दो प्रमुख घटक
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर योजना के क्रियान्वयन के दिशानिर्देशों के मुताबिक, इस योजना के दो प्रमुख घटक हैं. पहला है मीडिया प्रचार. इसके तहत हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं में रेडियो स्पॉट या जिंगल, टेलीविजन प्रचार, आउटडोर और प्रिंट मीडिया, मोबाइल एग्जिबिश वैन के जरिये सामुदायिक जुड़ाव, SMS कैंपेन, ब्रोशर आदि के जरिये प्रचार किया जाता है. और दूसरा है बाल लैंगिक अनुपात में खराब प्रदर्शन कर रहे जिलों में बहुक्षेत्रीय हस्तक्षेप करना. कमिटी का कहना है कि योजना का पैसा खर्च करने का क्लियर फॉर्मूला होने के बाद भी विज्ञापनों पर भारी भरकम राशि खर्च की गई. हर साल एक जिले में 6 अलग-अलट घटकों पर 50 लाख रुपए का खर्च निर्धारित किया गया है.
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