भोपाल गैस कांड : इतिहास बनी त्रासदी को भोग रही तीसरी पीढ़ी

भोपाल। 37 वर्ष पहले दो व तीन दिसंबर की दरमियानी आई शहर की वो मनहूस रात हजारों जिंदगियां लेकर चली गई और भोपाल को न जाने कितनी पीढ़ियों का दर्द दे गई। मानव त्रासदी का वो मंजर इतिहास के पन्नों में अक्षरश: दर्ज जरूर है पर आज भी सैकड़ों परिवार ऐसे हैं, जिनमें युवाओं से लेकर नवजात तक हादसे के बाद उपजी दिक्कतों के साथ जीने के लिए मजबूर हैं। अब तो बच्चों का दर्द देखते-देखते माता-पिता की आंखों के आंसू भी सूख चुके हैं। नियति बन चुके त्रासदी के दर्द का इलाज सरकारों के पास भी नहीं है। कहने को पीड़ितों की स्वास्थ्य सुविधाओं पर करोड़ों खर्च हो चुके हैं लेकिन जहरीली मिथाइल आइसोसाइनाइट का असर ऐसा है कि पीढ़ी दर पीढ़ी बना हुआ है।

अमन और विकास में ताजा हैं त्रासदी के जख्म

कारखाने से लगे जेपी नगर की दसवीं गली के मकान नंबर 417 में जाइये। यह पन्नालाल यादव का घर है। घर में उनके नाती विकास और अमन मिलेंगे। दोनों भाई गैस कांड के दर्द का जीता-जागता प्रमाण हैं। खुद से भोजन का एक निवाला भी नहीं तोड़ सकते, एक कदम चल नहीं सकते। पूरी जिंदगी दूसरों के सहारे कट रही है। जहरीली गैस को झेल चुके पन्न्ालाल फेफड़े और दिल की बीमारी से पीड़ित हैं। पन्नालाल अब तो नातियों के ठीक होने की उम्मीद भी छोड़ चुके हैं। यह दर्द अकेले विकास और अमन तक सीमित नहीं है, बल्कि मिलिट्री गेट शाहजहांनाबाद के दो वर्षीय अब्दुल अहद खान समेत कई परिवारों की तीसरी और चौथी पीढ़ी के नवजात बच्चे भी त्रासदी के गंभीर दुष्परिणामों को भोग रहे हैं।

पन्नालाल उस मनहूस रात की याद करते हुए बताते हैं कि अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्लांट के टैंक नंबर 610 से जब गैस रिसी थी, तब पूरा भोपाल गहरी नींद की आगोश में था। गैस की गंध से बेखबर लोग सर्द रात में रजाई में दुबके थे। शोर से जब लोगों की नींद खुली तो घरों से निकलकर भागे। तब तक हवा इतनी जहरीली हो गई थी कि उसमें सांस लेने वाले लोग मरते चले गए। 15 हजार से ज्यादा लोग तब जिंदगी की जंग हार गए थे। उस समय मेरी उम्र 35 के आसपास थी। तब से आज तक एक दिन ऐसा नहीं निकला, जब दवा-गोली न खाई हो। मुआवजे के नाम पर बेटा, पत्नी और मुझे 25-25 हजार रुपए जरूर मिले, पर मानसिक विकलांगता से जूझ रहे दोनों नाती अब तो भगवान भरोसे ही हैं।

सरकारी आंकड़ों में गैस कांड

– 40 टन गैस का रिसाव फैक्ट्री से हुआ था

– 5,74,376 लोग प्रभावित हुए थे

– 5,295 लोगों की मौत हुई थी

– 5,21,00 प्रभावितों को 25 हजार रुपये का मुआवजा दिया गया

– 10 लाख रुपए का मुआवजा मृतक के परिवार को दिया गया

– 48,000 अति प्रभावितों को एक लाख से पांच लाख रुपया मुआवजा दिया गया

– 7844 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मुआवजे की मांग गैस पीड़ित संगठनों द्वारा की गई

इनका कहना है

नीरे की 2016 की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि गैस पीड़ित माताओं और उनके बधाों के बधाों में जन्मजात विकृतियों की दर गैस पीड़ितों की तुलना में सात गुना अधिक है। इस अध्ययन के लिए उस समय 110 बधाों को चिन्हित किया गया था। यह रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गई और न ही रिपोर्ट के आधार पर आगे कोई अध्ययन हुआ। हमेें यह रिपोर्ट सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त हुई थी।

– रचना ढींगरा, सदस्य भोपाल ग्रुप फार इंफार्मेशन एंड एक्शन