19 साल के लड़के ने IPO को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की याचिका, अदालत ने किया खारिज

दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को ‘IPO (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) जारी करने में जल्दबाजी के तरीके’ के खिलाफ एक 19 वर्षीय युवक द्वारा दायर याचिका पर यह कहते हुए विचार करने से इनकार कर दिया कि यह ‘एक ब्लैकमेल करने के तरीके जैसी याचिका’ है. इसके साथ ही अदालत ने पूछा कि क्या ऐसा ‘कुछ कंपनियों को परेशान करने’ के लिए किया गया है और यह याचिका ‘किसके इशारे पर’ दायर की गयी है.

पीठ ने याचिका पर उठाए गंभीर सवाल

मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दों में “बारीक जानकारी” शामिल हैं और इसका किसी युवा याचिकाकर्ता से संबंध नहीं हो सकता. पीठ में न्यायमूर्ति ज्योति सिंह भी शामिल थीं. पीठ ने पूछा, “आईपीओ के बारे में कैसे निर्णय किए जाते हैं? शेयरधारिता कितने प्रकार की होती है? जब आप (याचिकाकर्ता के वकील) यह नहीं जानते तो 19 साल के लड़के को यह सब कैसे पता होगा?”

याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया है कि लड़का खुद एक खुदरा निवेशक है जो प्रतिभूति बाजार के उचित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए एक संरचना की मांग कर रहा है.

‘किसके इशारे पर दायर की गई याचिका’

उच्च न्यायालय ने पूछा, “यह याचिका किसके इशारे पर दायर की गयी है? आपको सरकार के पास जाना चाहिए था. आपको संबंधित पक्ष को (अदालत के समक्ष) लाना चाहिए. याचिका दायर करने वाला 19 साल का एक लड़का है. अगर हम उसे जिरह के लिए बुलाते हैं (चूंकि) मामला शपथ लेकर दायर किया गया है, तो हो सकता है कि उसे क, ख, ग भी नहीं पता हो.”

पीठ ने जब याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह या तो आवेदन के जरिए सरकार के समक्ष अपनी बातों को रखे या ‘फिर वह याचिका खारिज कर देगी, तो वकील ने बिना किसी शर्त के याचिका वापस ले ली.

क्या होता है IPO

मौजूदा समय में कई लोग शेयर बाजार में पैसा इन्वेस्ट करते हैं ताकि उन्हें बेहतर रिटर्न मिल सके. वहीं आईपीओ यानि इनिशि‍यल पब्‍लि‍क ऑफरिंग (Initial Public Offering) एक ऐसी ही प्रक्रिया है जिसमें कंपनियां शर्त के साथ मार्केट से पैसा जुटाती हैं. दरअसल, आईपीओ से पहले कंपनी सीमित शेयर धारकों के साथ निजी तौर पर कारोबार भी करती हैं. वहीं आईपीओ के बाद शेयरों का नंबर बढ़ जाता है. आईपीओ खरीदना एक तरह से किसी कंपनी के शेयर खरीदना ही है. इसमें कई नए इन्वेसटर मिल जाते हैं.

दरअसल, जिन कंपनियों के पास अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते, वे कंपनियां आम निवेशकों से पैसा इकट्ठा करने के लिए आईपीओ लेकर आती हैं. निवेशकों से मिले पैसे से कंपनी अपना काम-धंधा बढ़ाती है और उन्हें उनके पैसे के एवज में अपनी कंपनी के शेयर अलॉट करती हैं.

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