सिंहदेव ने कहा, नो गो एरिया ही हसदेव अरण्य क्षेत्र को बचाने का एकमात्र तरीका

रायपुर (राज्य ब्यूरो)। वाइल्ड लाइफ आफ इंडिया (डब्ल्यूआइआइ) की रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव कहा है कि हसदेव के बचाव के लिए नो-गो एरिया ही एकमात्र तरीका है। उन्होंने ट्वीट किया, भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट नो-गो के रुख की पुष्टि करती है। यह हसदेव क्षेत्र को बचाने का एकमात्र तरीका है। मेरी इच्छा है कि इन सुझावों को नीतिगत निर्णयों के रूप में लागू किया जाए, जैसा कि यूपीए सरकार के समय जयराम रमेश ने किया था।

डब्ल्यूआइआइ की रिपोर्ट के अनुसार, हसदेव अरण्य क्षेत्र में नई कोयला खदानों को अनुमति दी गई, तो उसके भयानक परिणाम होंगे। इससे इतना भयानक मानव-हाथी द्वंद्व होगा कि राज्य से संभाले नहीं संभलेगा। भारत सरकार वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2011 में 1898 हेक्टर में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लाक के लिए स्टेज वन की अनुमति प्रदान की है जबकि भारत सरकार की ही फारेस्ट एडवाइजरी कमिटी ने इस आवंटन को निरस्त करने की अनुशंसा की थी। बाद में 2012 में स्टेज 2 का फाइनल क्लीयरेंस भी जारी कर दिया गया और 2013 में माइनिंग कार्य चालू हो गया।

इस आदेश के बाद छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने एनजीटी, प्रिंसिपल बेंच में अपील दायर की। एनजीटी ने कार्यों को निलंबित कर दिया व आदेशित किया कि पर्यावरण और वन मंत्रालय फारेस्ट एडवाइजरी कमेटी से नई राय लेगी। एनजीटी ने सुझाव दिया कि इसके लिए भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान से एडवाइज, राय और स्पेशलाइज्ड नालेज ले सकती है, हालांकि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।

राज्य में एक फीसद हाथी, लेकिन 15 फीसद जनहानि

277 पेज की रिपोर्ट में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने बताया कि देश के एक प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ में हैं, जबकि हाथी-मानव द्वंद्व में 15 प्रतिशत जनहानि छत्तीसगढ़ में होती है। किसी एक स्थान पर कोल माइनिंग चालू की जाती है, तो हाथी वहां से हटने को मजबूर हो जाते हैं। दूसरे स्थान पर पहुंचने लगते हैं, जिससे नए स्थान पर हाथी-मानव द्वंद्व बढ़ने लगती है।