गुरुनानक ने यहां खारे से मीठे में बदल दिया था जल, आज भी बुझाता है सैकड़ों लोगों की प्यास ….

17 नवंबर (वेदांत समाचार)। कार्तिक पूर्णिमा का पावन पर्व सिर्फ हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि सिखों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसी दिन सिखों के पहले गुरु नानक जी का जन्म हुआ था. गुरु के प्रकाश पर्व की तैयारी सिख धर्म के अनुयायी महीनों पहले से ही शुरु कर देते हैं. गुरु नानक जयंती के पावन पर्व पर प्रभात फेरी निकाली जाती है और देश के विभिन्न गुरुद्वारे में पूरे दिन शबद-कीर्तन आदि का कार्यक्रम होता है. देश के विभिन्न गुरुद्वारों में दिल्ली के नानक प्याऊ गुरुद्वारा का बहुत ज्यादा महत्व है, क्योंकि लगभग पांच दशक पहले गुरु नानक जी इसी स्थान पर आकर ठहरे थे. आइए जानते हैं इस प्रसिद्ध गुरुद्वारे के धार्मिक इतिहास और महत्व.

देश की राजधानी दिल्ली का पहला गुरुद्वारा

देश का हर गुरुद्वारा अपने आप में खास है लेकिन आज हम आपको उस गुरुद्वारे के बारे में बताएंगे जिसकी स्थापना खुद गुरुनानक साहेब ने की थी. नानक प्याऊ गुरुद्वारा के बारे में मान्यता है कि जब सिखों के पहले गुरु नानक 1505 में पहली बार दिल्ली आए थे, तब उन्होंने इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी. यही कारण है कि यह प्रसिद्ध गुरुद्वारा सिख समुदाय के लिए बहुत मायने रखता है. मान्यता है कि ‘नानक प्याऊ गुरुद्वारा’ देश की राजधानी दिल्ली का पहला दिल्ली का पहला गुरुद्वारा है.

इस गुरुद्वारा को क्यों कहते है नानक प्याऊ?

यदि आप सोच रहे हैं कि आखिर गुरु नानक जी से जुड़े इस गुरुद्वारे को आखिर नानक प्याऊ गुरुद्वारा कहकर क्यों बुलाया जाता है. गुरु नानक जी के नाम के साथ प्याऊ जोड़ने की क्या जरूरत पड़ी तो जान लीजिए इसके पीछे भी एक चमत्कारिक घटना जुड़ी हुई है. दरअसल, गुरुनानक जी जब पहली बार दिल्ली आए तो वे इसी स्थान पर रुके थे. कहते हैं कि उस समय यहां पर रहने वाले लोगों को पीने का पानी नसबी नहीं होता था, क्योंकि यहां पर जमीन से खारा पानी निकलता था. जिसके कारण यहां पर लोग बहुत परेशान और अक्सर बीमार रहा करते थे. जब गुरुनानक जी यहां पहुंचे तो लोगों ने उनसे अपनी यह समस्या बताई. इसके बाद गुरुनानक जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से लोगों को एक स्थान पर कुंआ खोदने के लिए कहा. इसके बाद गुरु के चमत्कार से वहां पर मीठा पानी निकला और लोगों के पीने के लिए पानी उलब्ध हो गया. तब से लेकर आज तक न सिर्फ इस गुरुद्वारे में लोगों को पीने के लिए अमृत जल मिल रहा है, बल्कि यहां पर लगभग 500 सालों से लगातार चलने वाला लंगर भी लोगों की भूख मिटाने का काम कर रहा है. गुरु के प्रकाश पर्व इस गुरुद्वारे को फूल एवं रोशनी से सजाया जाता है.

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