केंद्र सरकार की ओर से अध्यादेश के जरिए केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाए जाने को लेकर विवाद जारी है, इस बीच सीबीआई में सुधार के लिए करीब 3 दशक पहले सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक याचिका लगाने वाले याचिकाकर्ता की ओर से गुहार लगाई गई है कि इस पूरे प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप करे.
इन अध्यादेशों पर आपत्ति जताते हुए, जो केंद्र को केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुखों को 5 साल तक के कार्यकाल के लिए नियुक्त करने का अधिकार देते हैं, इस पर 28 साल पहले लगाई गई याचिका पर 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में, जिसने सीबीआई को “स्वतंत्रता” प्रदान की और इसके निदेशक के कार्यकाल को 2 साल के लिए फिक्स कर दिया, अब उसी याचिकाकर्ता का कहना है कि शीर्ष अदालत को अब हस्तक्षेप करना चाहिए और इसमें सुधार करना चाहिए.
नए अध्यादेश में क्या बदलाव
नए अध्यादेश के बाद केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक अपने पद पर अब 5-5 साल तक बने रहे सकते हैं. केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते रविवार को दो अध्यादेशों के जरिए उनका अधिकतम कार्यकाल बढ़ा दिया. इस अध्यादेश के पारित होने के पहले तक ये नियुक्तियां 2 साल की तय अवधि के लिए हुआ करती थीं. यह सेवा विस्तार 2 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद विशेष परिस्थितियों और नियुक्ति समिति की अनुशंसा के आधार पर 1-1 साल के लिए 3 बार मिल सकती है.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, याचिकाकर्ता विनीत नारायण ने कहा, ‘अब माननीय सुप्रीम कोर्ट को इस आदेश का संज्ञान लेना चाहिए और 1997 में अपने पिछले फैसले को देखते हुए में इसकी योग्यता का मूल्यांकन करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि सीबीआई के साथ-साथ प्रवर्तन निदेशालय में स्वायत्तता की भावना को कैसे बनाए रखा जाना चाहिए. विनीत नारायण ने 1993 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने जांच एजेंसी पर लगे अंकुश सवाल उठाया था. इसी पर कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया था.
‘अध्यादेश से पहले केंद्र करने चाहिए थे 2 फैसले’
नारायण ने कहा, केंद्र का इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने का अपना अधिकार है, लेकिन ऐसा करने से पहले उसे आदर्श रूप से सुप्रीम कोर्ट से संपर्क करना चाहिए था और संसद के पटल पर चर्चा करनी चाहिए थी. उन्होंने कहा कि आदर्श रूप से, सरकार को पहले दोनों कदम उठाने चाहिए थे. संसद में इस मामले पर बहस और सुप्रीम कोर्ट को भी मामले पर फिर से विचार करने का मौका मिलना चाहिए था.
नारायण ने कहा कि उन्हें दो जांच एजेंसियों के प्रमुखों के लिए निर्धारित 5 साल के कार्यकाल से कोई समस्या नहीं है, उन्हें एकमुश्त नियुक्ति के रूप में विस्तारित कार्यकाल दिया जाना चाहिए.
वर्तमान परिदृश्य पर अपनी आपत्तियों के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा, ‘सीबीआई और ईडी संवेदनशील संगठन हैं और सरकार पर उनके दुरुपयोग के कई आरोप लगे हैं. निदेशकों को एक बार में कुछ महीने या एक साल का विस्तार देने से उन्हें ब्लैकमेल किया जाएगा और इससे एजेंसियों की आजादी पर असर पड़ेगा.’ नारायण ने कहा, ‘प्रक्रिया को पारदर्शी रखने के लिए 5 साल का कार्यकाल एक बार में दिया जाना चाहिए ताकि सीबीआई और ईडी के प्रमुखों पर तलवार लटकी न रह जाए.’
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