आज व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के समय में ज्यादातर युवाओं को या कहें नागरिको को इसके बारे में जानकारी ही नहीं है। वर्ष 2014 के आम चुनाव के समय में महंगाई को मुख्य मुद्दा बनाकर सत्ता में आई केंद्र की मोदी सरकार ने आम मतदाताओं को मृग मारीचिका दिखाते हुए न जाने क्या क्या वादे किये थे। बड़े बड़े होर्डिंग्स, पोस्टर, बैनर, आम भाषणों और नारों के माध्यम सें केवल और केवल मंहगाई को ही प्रमुख मुद्दा बनाकर आम जनता के सामने परोसा गया था जिसमें उस समय विपक्ष में बैठने वाले नेताओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। सवाल यह उठता है कि आज जब 2021 समापन की ओर अग्रसर है तो ऐसा क्या हुआ कि देश में आज महंगाई अपने चरमोत्कर्ष के शिखर को छूने पर बेताब है। देश के इतिहास में यह पहला मौका है जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार की तुलना में देश के भीतर ईंधन की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिली है जिसके कारण परिवहन खर्च में बढ़ोत्तरी और फिर इसके कारण अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की कीमते नियंत्रण से बाहर हो चुकी हैं। इन विषम परिस्थितियों के बावजूद भी सरकार आँखें मूंदे खड़ी है। अवांछित तौर पर दिसम्बर 2019 से ही देश में कोरोना की दस्तक हो चुकी थी। इस बीच हमे बहुत भयवाह मंजर देखना पड़ा। पूरे देश के अस्पतालों में बिस्तरों की कमी, चिकित्सको की कमी, ऑक्सीजन की कमी, दवाईयों की कमी के साथ ही सभी जगह जीवन रक्षण के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाओं की कमी का बोलबाला रहा है। इस विकट स्थिति से उबरने और आम नागरिकों के जीवन रक्षण के लिए पूरी दुनिया के साथ ही हमारा पूरा तंत्र इस पर केन्द्रित हो गया। बावजूद विकट परिस्थितियों के अंततः हमने अपने वैज्ञानिको की मदद से इससे बचाव के लिए टीके की खोज को सम्भव कर दिखाया। आज देश में हर नागरिक को निःशुल्क कोरोना टीका लगवाया जा रहा है और इसका गुणगान हर चैक चैराहो, विभिन्न टीवी चैनलो और अखबारों के माध्यम से किया जा रहा है जिसमें प्रमुखता से लोग यह कहते हुए पाए जायेंगे कि मोदी जी ने निःशुल्क टीकाकरण अभियान चलाया है जो दुनिया में और कहीं नहीं देखने को मिला। कुछ बुद्धिजियों का कहना है कि मोदी जी सभी को निशुल्क टीका लगवा रहे हैं तो आखिर उस पैसे को कहाँ से लाएंगे। इस पैसे की भरपाई तो पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतों के माध्यम से जनता से वसूली की जा रही है।
क्या इससे पहले कभी वैश्विक महामारी नहीं आई है? क्या पहले कभी प्राकृतिक आपदाएं नहीं आई है?? अगर आई हैं तो उसका निदान कैसे किया गया। क्या पहले आई प्राकृतिक आपदाओं पर सरकार द्वारा खर्च की गई धनराशि की भरपाई के लिए आम जनता से वसूली करने के लिए महंगाई को आज के सामान बढ़ाया गया। मुझे लगता है शायद ऐसा नहीं हुआ है। कोरोना टीका हो या अन्य आवश्यक कार्य जो देश की जनता के लिए कल्याणकारी हो उसमें लगने वाले धन को सरकार किस मद से और कैसे एकत्रित करती है यह आर्थशास्त्र का विषय है जिसपर विस्तारपूर्वक अलग से चर्चा किया जा सकता है। मुझे लगता है इसको समझने के लिए हमें भारत के संविधान एवं कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को समझ लेना ही पर्याप्त है।
आखिर क्या है कल्याणकारी राज्य की अवधारण??
कल्याणकारी राज्य, शासन की वह संकल्पना है जिसमें राज्य नागरिकों के आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कल्याणकारी राज्य अवसर की समानता, धन-सम्पत्ति के समान वितरण, तथा जो लोग अच्छे जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं को स्वयं जुटा पाने में असमर्थ है उनकी सहायता करने जैसे सिद्धान्तों पर आधारित है। यह एक सामान्य शब्द है जिसके अन्तर्गत अनेकानेक प्रकार के आर्थिक एवं सामाजिक संगठन आ जाते हैं। कल्याणकारी राज्य सरकार का एक स्वरूप है जिसमें राज्य समान अवसर के सिद्धांतों, धन के समान वितरण और नागरिकों के लिए सार्वजनिक जिम्मेदारी के आधार पर नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक हित की रक्षा करता है और उन्हें बढ़ावा देता है, जो स्वयं का लाभ उठाने में असमर्थ हैं।
1-समाजशास्त्री टीएच मार्शल ने आधुनिक कल्याणकारी राज्य को लोकतंत्र , कल्याण और पूंजीवाद के विशिष्ट संयोजन के रूप में वर्णित किया है।
2-मिश्रित अर्थव्यवस्था के एक प्रकार के रूप में, कल्याणकारी राज्य, सरकारी संस्थाओं को स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए धन देते हैं, साथ ही व्यक्तिगत नागरिकों को प्रत्यक्ष लाभ देते हैं।
3- आधुनिक कल्याणकारी राज्यों में जर्मनी और फ्रांस, बेल्जियम और नीदरलैंड शामिल हैं।
4- साथ ही नॉर्डिक देश जो नॉर्डिक मॉडल के रूप में जानी जाने वाली प्रणाली को रोजगार देते हैं। कल्याणकारी राज्य के विभिन्न कार्यान्वयन तीन श्रेणियों में आते हैंः
(1) सामाजिक लोकतांत्रिक,
(2) उदारवादी, और
(3) रूढ़िवादी
आधुनिक कल्याणकारी राज्य को दो भागों में बांटा गया है।
१) राज्य के आवश्यक एवं अनिवार्य कार्य
२) राज्य के ऐच्छिक कार्य
3) प्रमुख रूप से भारतीय संविधान के भाग 4(ए) में उल्लेखित ‘‘नीति निर्देशक तत्व‘‘ (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 से लेकर 51 तक) इसके बारे में प्रत्येक नागरिक को होना आवश्यक है।
लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा अत्यन्त प्राचीनकाल से ही भारत में रही है । प्राचीन युग में राज्य को नैतिक कल्याण का साधन माना जाता था । रामायण काल में तो रामराज्य की अवधारणा इसी लोक कल्याणकारी राज्य के सिद्धान्त पर आधारित थी। हिन्दुओं के धार्मिक ग्रन्थों में यहां तक लिखा है कि यदि राजा अपनी प्रजा का हित नहीं चाहता और अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता, वह नरक का अधिकारी होता है । चाणक्य हों या फिर अरस्तु या प्लेटो, इन्होंने भी लोक कल्याण कारी राज्य की अवधारणा को महत्त्व दिया है। लोक कल्याणकारी राज्य से तात्पर्य किसी विशेष वर्ग का कल्याण न होकर सम्पूर्ण जनता का कल्याण होता है । इस तरह सम्पूर्ण जनता को केन्द्र मानकर जो राज्य कार्य करता है, वह लोक कल्याणकारी राज्य है ।
लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के सम्बन्ध में इंसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंसेस के विचार हैंः “लोककल्याणकारी राज्य से तात्पर्य ऐसे राज्य से है, जो अपने सभी नागरिकों को न्यूनतम जीवन रत्तर प्रदान करना अपना अनिवार्य उत्तरदायित्व समझता है।” प्रो॰ एच॰जे॰ लास्की के अनुसारः “लोक कल्याणकारी राज्य लोगों का ऐसा संगठन है, जिसमें सबका सामूहिक रूप से अधिकाधिक हित निहित है।”
लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के सम्बन्ध में मेरे विचार हैंः “लोक कल्याणकारी राज्य से तात्पर्य ऐसे राज्य से है, जो अपने सभी नागरिकों को न्यूनतम जीवन स्तर प्रदान करना अपना अनिवार्य उत्तरदायित्व समझता है। चाहे सरकार किसी भी राजनितिक दल की हो उनका संवैधानिक कर्तव्य होता है कि अपने नागरिको को आपदा से निकालने के लिए वो निःशुल्क समाधान मुहैय्या कराएं। हम सब को समझना होगा कि व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से निकलकर वास्तविक ज्ञान लेना अति आवश्यक है।
लेखक बलवंत सिंह खन्ना,कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर के समाज कार्य विभाग के पूर्व छात्र एवं युवा सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ समसामयिक मुद्दो के विचारक हैं।
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