दिव्यांगता पर भारी पड़े मजबूत इरादे, फतह कर रहे मंजिल

रायपुर 24 अक्टूबर (वेदांत समाचार)। तरक्की के लिए मेहनत, मजबूत इरादा और बुलंद हौसला होना चाहिए। दिव्यांगता की वजह से सपने साकार करने में थोड़ी मुश्किल होती है, लेकिन कई ऐसे लोग हैं, जो दिव्यांगता को जीवन पर भारी नहीं पड़ने देते हैं। ऐसे ऊर्जावान लोगों ने खेल, संगीत, शिक्षा, व्यापार के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।आज हम यहां कुछ दिव्यांग खिलाड़ियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जो दिव्यांगता को पीछे धकेलकर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के तीरंदाज हैं और दूसरे बाडी बिल्डिंग के क्षेत्र में दमखम दिखा रहे हैं। ये दोनों खिलाड़ी पैर से दिव्यांग हैं, लेकिन मंजिल पाने के लिए दिव्यांगता की परवाह नहीं कर रहे हैं।। पढ़ें विश्व पोलियो दिवस पर इन दोनों खिलाड़ियों के जीवन के कई पहलुओं के बारे में।

सपना 2024 में पेरिस पैरा ओलंलिक खेलने का, संसाधन के लिए पैसे नहीं

अंतरराष्ट्रीय पैरा तीरंदाजी खिलाड़ी सतेंद्र कुमार मिरे बाएं पैर से दिव्यांग हैं। उन्होंने व्हीलचेयर की सहायता से तीरंदाजी में कई मेडल प्राप्त किए हैं। सतेंद्र ने बताया कि अभी 2022 में एशियन पैरा गेम्स हांगझोऊ (चीन) की ट्रायल की तैयारी के साथ ही 2024 पेरिस पैरा ओलंपिक तैयारी कर रहे हैं। इन दोनों प्रतियोगिताओं के लिए उनके पास कंपाउंड इवेंट के संसाधन उपलब्ध नहीं हैं

इसके लिए उन्होंने शासन-प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है, लेकिन अभी तक उन्हें कोई मदद नहीं मिल पाई है। सतेंद्र ने बताया कि 2012 में छत्तीसगढ़ राज्य के लिए राष्ट्रीय पैरा तीरंदाजी प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एशियन पैरा गेम्स 2014 में इचियान (दक्षिण कोरिया) के लिए चयन हुआ। वहां भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के लिए चार राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रतिनिधित्व किया और मेडल प्राप्त किया। सतेंद्र ने बताया कि उनके पास खेती के लिए जमीन भी नहीं है।

माता बृज बाई मिरे, पिता शंकर लाल मिरे रोजी-रोटी के लिए अन्य प्रदेशों में ईंट भट्ठों में मजदूरी करते हैं। सतेंद्र का कहना है- मैं देश के लिए आगे भी खेलना चाहता हूं, लेकिन आर्थिक तंगी बाधा बनाकर सामने है। बता दें कि सतेंद्र तीरंदाजी के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होने के साथ ही वे बीए, एमए, डीएड, आइटीआइ कोपा, आइटीआइ इलेक्ट्रीशियन की योग्यता भी रखते हैं।

…और बन गए बाडी बिल्डर

राजधानी के महोबा बाजार निवासी 33 वर्षीय संदीप कुमार साहू एक पैर से दिव्यांग हैं। वे बाडी बिल्डिंग के क्षेत्र में हैं। उन्होंने बताया कि बचपन में उनका बायां पैर पोलियो के कारण खराब हो गया। मां नीरा बाई और पिता रामसनी साहू ने हाथ पकड़कर चलना सिखाया। इस बीच कई बार गली-मुहल्लों में शर्मिंदा भी होना पड़ा। लेकिन इन बातों की ओर ध्यान न देकर उन्होंने उस समय सिर्फ पढ़ाई पर फोकस किया।

इसके बाद पोलियों को पीछे धकेलकर बाडी बिल्डिंग के क्षेत्र में कदम रखा। परिचित की राय से पैरा बाडी बिल्डिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। शुरुआत में जिम के लिए पैसे नहीं थे। फिर भी कई बार हारने के बाद चैंपियनशिप में मेंडल जीतने लगा। अब तक छह बार मिस्टर छत्तीसगढ़ का टाइटल, पांच बार मिस्टर रायपुर और 2017 में गुड़गांव में इंडिया मिस्टर का टाइटल अपने नाम किया।संदीप ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर चैंपियनशिप की तैयारी कर रहा हूं। वहीं एक बार रशिया में इंटरनेशनल चैंपियनशिप में जाने का मौका मिला था, लेकिन उस वक्त आर्थिक तंगी के कारण नहीं जा पाए।

ई-रिक्शा बना पोलियो ग्रस्त लोगों के लिए वरदान

आज रोटी-रोटी के लिए दिव्यांगता बांधा नहीं आ रही है। इसका ताजा उदाहरण रायपुर नगर निगम क्षेत्र में देखने को मिल जाएगा। छत्तीसगढ़ दिव्यांग संघ के सचिव धरमराज साहू ने बताया कि राजधानी में ई-रिक्शा चलाने से कई दिव्यांगों को रोजगार मिल रहा है। अभी हाल में 16 महिलाएं और 14 पुरुष दिव्यांग हैं, जो ई-रिक्शा के माध्यम से परिवार चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसमें कई लोग हाथ, पैर या अन्य तरह की दिव्यांगता के शिकार हैं। वे ई-रिक्शा को अपनी सुविधा के अनुसार बनवाकर सड़क पर दौड़ा रहे हैं।