कोयला संकट से उबारने में छत्तीसगढ़ से बंधी देश की उम्मीद

 रायपुर 12 अक्टूबर (वेदांत समाचार) । विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक होने के बावजूद भारत कोयला संकट के दौर से गुजर रहा है। इसकी वजह से राष्ट्रीय स्तर पर बिजली की समस्या उत्पन्न हो रही है। मुख्य उत्पादक राज्य छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है। यहां संचालित राज्य विद्युत कंपनी के विद्युत संयंत्रों के अलावा बाल्को, एनटीपीसी में भी केवल तीन से पांच दिन के कोयला का स्टाक है। 250 से अधिक छोटे उद्योगों में कोयले की कमी बनी हुई है।कोयला संकट के वैश्विक कारण तो हैं, साथ ही स्थानीय कारण भी जुड़े हुए हैं। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआइएल) की आठ संबद्ध कंपनियों में छत्तीसगढ़ में संचालित साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड सबसे बड़ी कंपनी है। बीते वर्ष के 1,506 लाख टन कोयला उत्पादन में ऊर्जा नगरी कोरबा में संचालित मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका, कुसमुंडा व कोरबा ने 1183.8 लाख टन उत्पादन के साथ 78.66 फीसद भागीदारी निभाई।

एसईसीएल छत्तीसगढ़ समेत महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश व पंजाब के उद्योगों में कोयले की आपूर्ति कर रही है। एक बार फिर इन मेगा प्रोजेक्ट पर निगाह है और संकट से उबारने में छत्तीसगढ़ से देश की उम्मीद बंधी हुई है। बारिश में कोयला खदान में उत्पादन प्रभावित होना सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन इसके पहले इस तरह की संकट की स्थिति निर्मित नहीं हुई। अब ऐसे में सवाल उठता है कि इस बार ही यह नौबत क्यों आई? दरअसल कोरोना से आर्थिक गतिविधियां ठप हो गईं।

इससे ऊर्जा के स्रोत घट गए। आर्थिक गतिविधि सामान्य होने पर कोयले का उत्पादन पूर्व की तरह बढ़ता, इसके पहले बारिश शुरू हो गई। खदानों में उत्पादन 50 फीसद तक नीचे चला गया, साथ ही आयातित कोयला भी महंगा हो गया। देश 75 फीसद घरेलू उत्पाद व 25 फीसद आयातित कोयले पर निर्भर है। इसका असर यह रहा कि कोल इंडिया पर आपूर्ति का दबाव बढ़ गया। देश की उम्मीदों पर खरा उतरने एसईसीएल प्रबंधन को कुछ बिंदुओं पर काम करना होगा। वर्ष 1978 से अब तक जमीन अधिग्रहण से प्रभावित तीन हजार से अधिक भू-विस्थापित नौकरी व मुआवजा के लिए भटक रहे हैं। लंबे समय से खदानों में भू-विस्थापित संगठनों का प्रदर्शन चल रहा है।

संजीदगी से प्रबंधन यदि इन मामलों को निपटाता है तो ग्राम नराईबोध, भठोरा, रलिया, अमगांव, बाम्हनपाठ, मलगांव, सुआभोड़ी, बरकुटा, जटराज समेत अन्य दर्जनों गांवों में जमीन अधिग्रहण की लंबित प्रक्रिया के लिए राह खुलेगी। साथ ही खदान में उत्पादन के अवसरों की उपलब्धता भी बढ़ेगी। नीलामी की पारदर्शी प्रक्रिया शुरू करने की भी जरूरत है, ताकि कोयला की उपलब्धता बढ़े। राज्य में अभी आठ कोल ब्लाक विकसित होने हैं। साथ ही तकनीकी अधिकारियों की कमी दूर करनी होगी। इन सभी प्रक्रियाओं को तेज करना होगा। सबसे अहम बात यह है कि अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ानी होगी। इसके लिए जागरूकता आवश्यक है।

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