SP ने अयोग्य बताकर परीक्षा में बैठने से कर दिया था वंचित, हाईकोर्ट से आरक्षक को प्रधान आरक्षक पदोन्नति परीक्षा में बैठने की मिली अनुमति


बिलासपुर, 15 सितंबर । जिला मुंगेली के फास्टरपुर थाना में पदस्थ आरक्षक मीठा लाल जांगडे को विभागीय पदोन्नति परीक्षा देने से बड़ी सजा होने का हवाला देकर अयोग्य घोषित कर दिया गया था। इस प्रकरण पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट बिलासपुर ने नियमानुसार विभागीय पदोन्नति हेतु शारीरिक, लिखित, और समस्त परीक्षाओं में बैठने की अंतरिम राहत का आदेश पारित किया है।

मामला इस प्रकार है कि 30 अगस्त 2017 को आरक्षक मीठा लाल जांगडे और ईश्वर साहू द्वारा पेशी कराकर बिलासपुर न्यायालय से वापस आते समय पथरिया मोड़ से उप जेल मुंगेली में निरुद्ध बंदी प्रकाश सोनवानी पुलिस अभिरक्षा से फरार होकर पुलिस अधीक्षक से मिलने कार्यालय पहुंच गया था। जिसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया था। उक्त घटना को पुलिस रेगुलेशन की कंडिका 64 (2), (3) का उल्लंघन मानते हुए मीठालाल जांगडे और ईश्वर साहू की एक वेतन वृद्धि एक वर्ष के लिए संचयी प्रभाव से रोकेने का आदेश पुलिस अधीक्षक मुंगेली द्वारा जारी किया गया था। पुलिस अधीक्षक मुंगेली के आदेश से दुखी होकर मीठा लाल जांगडे ने अपील पुलिस महानिरीक्षक बिलासपुर रेंज के समक्ष प्रस्तुत किया। पुलिस महानिरीक्षक ने मीठा लाल जांगडे द्वारा प्रस्तुत अपील को निरस्त करते हुए पुलिस अधीक्षक मुंगेली द्वारा पारित आदेश को यथावत रखा। इसके उपरांत जांगडे द्वारा एक दया याचिका पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़ शासन के समक्ष वर्तमान में लंबित है।

इस दौरान कार्यालय पुलिस अधीक्षक मुंगेली द्वारा आरक्षक से प्रधान आरक्षक पदोन्नति परीक्षा हेतु संयुक्त वरीयता क्रम सूची का प्रकाशन किया गया। जिसमें मीठा लाल जांगडे को बड़ी सजा होने से अयोग्य घोषित बताया गया। इसके विरूद्ध जांगडे ने हाई कोर्ट अधिवक्ता अनादि शर्मा और नरेन्द्र मेहेर के माध्यम से याचिका दायर की जिसकी सुनवाई दिनांक 14 सितंबर 2021 को न्यायमूर्ति पी. सेम कोशी के यहाँ हुई। याचिका में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अनादि शर्मा द्वारा यह तर्क दिया गया कि पुलिस विनियम के अनुसार पुलिस अधीक्षक को बड़ी सजा के तौर पर एक वेतनवृद्धि को संचयी रूप से रोकने का अधिकार नहीं है एवं गलत तरीके से दी गई सजा के एवज में प्रार्थी को विभागीय पदोन्नति परीक्षा में अयोग्य ठहराना न्यायसंगत नहीं हो सकता। साथ ही याचिकाकर्ता के साथ रहे आरक्षक जिसे भी विभागीय जांच में दोषी ठहराया गया था और एक वेतनवृद्धि संचयी प्रभाव से रोके जाने का आदेश दिया गया था, उसे विभागीय पदोन्नति परीक्षा में बैठने हेतु योग्य करार दिया, जो याचिकाकर्ता के साथ हुए भेदभाव को दर्शाता है।

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