अंबिकापुर 06 सितम्बर (वेदांत समाचार) /बलरामपुर जिले के बरवाही गांव में इलाज के अभाव में कुपोषित एक पंडो जनजाति के युवक की मौत हो गई। उसका स्वास्थ्य पिछले कई दिनों से खराब था, जिस पर उसे पहले जड़ी-बूटी खिलाई गई। जब वह ठीक नहीं हुआ तो झाड़फूंक कराया गया। हालत बिगड़ी तो उसे स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में ले जाया गया, जहां डाॅक्टरों ने जिला अस्पताल रेफर किया, लेकिन पैसों के अभाव में वहां लेकर नहीं गए।
इससे उसकी मौत हो गई। बलरामपुर जिला में इलाज के अभाव में विशेष संरक्षित जनजाति समुदाय में एक माह के भीतर यह चौथी मौत है। सनावल इलाके के ग्राम पंचायत बरवाही निवासी राजनाथ पण्डो 35 वर्ष की तबीयत चार दिन से खराब थी। उसे शुक्रवार को इलाज के लिए पड़ोसी सनावल स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहां डाॅक्टर ने शरीर में हीमोग्लोबिन कम होना बताया और किसी अच्छे अस्पताल या जिला अस्पताल ले जाने के लिए कहा, लेकिन उसके पड़ोसी रघुराज ने बताया कि उनके पास अस्पताल तक ले जाने पैसे नहीं थे।
इसके कारण घर में इलाज के अभाव में शनिवार को चार बजे शाम को मौत हो गई। यह भी बताया गया है कि राजनाथ पण्डो की गंभीर हालत पर तत्काल सनावल स्वास्थ्य केंद्र के जिम्मेदार एम्बुलेंस बुलाकर उसे जिला अस्पताल भेज दिए होते तो उसे इलाज मिला होता और उसकी जान बच जाती।
राजनाथ पंडो की तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल ले जाने की बजाय परिजन ने झाडफूंक कराई, उससे भी राहत नहीं मिली तो स्वास्थ्य केंद्र लेकर गए थे। उसके शव का अंतिम संस्कार रविवार को सुबह किया गया। ग्रामीणों ने बताया कि उसकी सबसे बड़ी बेटी 17 वर्ष, दूसरी 12 और छोटा बेटा 8 साल का है। लाभ नहीं मिला न प्रोत्साहन राशि दिया गया। इसके बाद दूसरे बार प्रसव पर वह घर नहीं गई। गांव की दूसरी महिलाओं को भी स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं का लाभ नहीं मिलता और न ही उन्हें जागरूक किया जाता है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी उनकी बस्ती में नहीं आती हैं।
मौत के बाद घर पहुंचा स्वास्थ्य अमला, आज लगेगा स्वास्थ्य शिविर
पंडो युवक की मौत की खबर मिलने पर रविवार सुबह स्वास्थ्य अमला गांव पहुंचा और उसके परिजन व अन्य लोगों के स्वास्थ्य की जांच की। इस पंडो परिवार के पास रहने के लिए सही मकान तक नहीं है, मिट्टी के मकान में दरवाजे तक नहीं हैं। इसके बाद भी उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला है, जबकि पड़ोसियों ने बताया कि गरीबी के कारण उसकी बड़ी बेटी पांचवी तक की पढ़ाई के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया था और परिजन के साथ खुद भी मजदूरी करने जाती थी।
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