खाने के तेल की बढ़ती कीमतों को काबू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आज कैबिनेट और सीसीईए की अहम बैठक हो रही है. इस बैठक में पाम ऑयल मिशन को मंजूरी मिल सकती है. इस पर 11 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. आपको बता दें कि भारत की आबादी में हर साल करीब 2.5 करोड़ लोग जुड़ते जा रहे हैं. इसके हिसाब से खाने के तेल की खपत में सालाना 3 से 3.5 फीसदी की बढ़त होने का अनुमान है. मौजूदा समय में एक साल में भारत सरकार 60,000 से 70,000 करोड़ रुपये खर्च कर 1.5 करोड़ टन खाने का तेल खरीदती है. देश को अपनी आबादी के लिए सालाना करीब 2.5 करोड़ टन खाने के तेल की जरूरत होती है.
कौन सा खाने का तेल सबसे ज्यादा भारत में इस्तेमाल होता है
भारत में सोया और पाम ऑयल का सबसे ज्यादा आयात होता है. खाने वाले तेलों में जहां पाम ऑयल यानि ताड़ का तेल कुल आयात का 40 फीसदी होता है वहीं सोयाबीन का तेल करीब 33 फीसदी होता है. सोयाबीन का तेल अर्जेंटीना और ब्राजील से आयात होता है.
पाम तेल उत्पादन में इंडोनीशिया दुनिया में नंबर एक पर है. दूसरे नंबर पर है मलेशिया है. कुछ अफ्रीकी देशों में भी इसका उत्पादन होता है.
खाने वाले तेलों के मामले में भारत के आयात का दो तिहाई हिस्सा केवल पाम ऑयल का है. भारत सालाना करीब 90 लाख टन पाम ऑयल का आयात करता है.भारत में इंडोनीशिया और मलेशिया दोनों ही देशों से पाम ऑयल का आयात किया जाता है.
अब क्या करेगी सरकार
नेशनल एडिबल ऑयल मिशन के तहत केंद्र सरकार का पाम ऑयल उत्पादन बढ़ाने पर जोर रहेगा. भारत में तैलीय बीजों वाले पेड़-पौधों की उपज बहुत कम होती है.
अब इसे बढ़ाकर इतना करने की योजना बनी है जिससे किसानों की आय को भी दोगुना किया जा सके. इससे पहले भी भारत को दालों की उपज के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश हो चुकी है.
आपको बता दें कि भारत सरकार ने कृषि मंत्रालय को ऐसी योजना बनाने को कहा था कि जिससे आने वाले सालों में खाद्य तेलों का आयात बंद किया जा सके. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में बताया था कि देश में पाम ऑयल उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को सभी तरह की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी. अच्छी क्वालिटी के बीज, टेक्नोलॉजी किसानों को मिलेगी. मौजूदा समय में नॉर्थ ईस्ट में पाम ऑयल की खेती शुरू हो चुकी है.
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