छत्तीसगढ़ : ट्रांसफर के बाद भी कोरबा, महासमुंद और कांकेर के नए मेडिकल कॉलेजों में नहीं किया जॉइन, 5 प्रोफेसरों का हुआ डिमोशन

रायपुर। छत्तीसगढ़ के मेडिकल कॉलेजों में पदस्थ प्रोफेसरों की मनमानी पर चिकित्सा शिक्षा विभाग सख्त हो गया है। विभाग ने 5 प्रोफेसरों को डिमोट कर दिया है। साथ ही एक साल के लिए प्रमोशन पाने से अयोग्य भी ठहरा दिया है। इन प्रोफेसरों को पदोन्नति देने के साथ ही दूसरे मेडिकल कॉलेजों में ट्रांसफर किया गया था, लेकिन 5 महीने बीत जाने के बाद भी वहां जॉइन ही नहीं किया था।

दरअसल महासमुंद, कांकेर और कोरबा में 3 नए मेडिकल कॉलेज सरकार संचालित कर रही है। इसके लिए मानक के अनुरूप प्रोफेसरों और सहायक स्टाफ की जरूरत है। इसको पूरा करने के लिए पहले से संचालित 6 मेडिकल कॉलेजों से प्रोफेसर लिए जाने थे। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मार्च 2021 में इन कॉलेजों से 17 असिस्टेंट प्रोफेसर को प्रमोशन देकर ट्रांसफर कर दिया। शर्त थी कि 10 दिन में नई जगह जॉइन करेंगे, लेकिन ये गए ही नहीं।

सरकार ने कार्रवाई के लिए मंजूरी दी


काफी मशक्कत के बाद 12 प्राध्यापकों ने तो नए कॉलेज में जाकर काम संभाल लिया, लेकिन 5 फिर भी नहीं गए। विभाग स्तर पर लंबी चर्चा के बाद सरकार ने पांचों प्रोफेसरों के खिलाफ एक्शन की मंजूरी दे दी। चिकित्सा शिक्षा विभाग के अवर सचिव राजीव अहिरे की ओर से जारी आदेश के मुताबिक पांचों को डिमोट कर फिर असिस्टेंट प्रोफेसर बना दिया गया है। उनका ट्रांसफर भी निरस्त कर दिया गया। अब पहले की तरह पुराने कॉलेजों में बने रहेंगे।

इन प्रोफेसरों पर गिरी है गाज


जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, रायपुर में कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. शुभ्रा अग्रवाल को बिलासपुर सिम्स भेजा गया था। शिशु रोग विभाग के डॉ. धीरज सोलंकी को रायपुर से महासमुंद, शिशु रोग विभाग के डॉ. वीरेंद्र कुर्रे और रेडियोडायग्नोसिस के डॉ. राजेश कुमार सिंह को रायपुर से अम्बिकापुर और जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विभाग के डॉ. जॉन मसीह को कांकेर मेडिकल कॉलेज भेजा गया था।

अभी नरमी बरती गई है


मेडिकल कॉलेज में कई डॉक्टरों का कहना है कि यह कार्रवाई सख्त है। लेकिन ऐसा भी कहा जा रहा है, इस मामले में सरकार ने काफी नरमी बरती है। पदोन्नति और स्थानांतरण आदेश की शर्तों में शामिल था, इसकी अवहेलना पर पदोन्नति से तीन वर्षों के लिए अयोग्य किया जा सकता है। इसके बाद भी एक साल के लिए अयोग्य घोषित कर केवल औपचारिकता पूरी की गई है। जो प्राध्यापक कॉलेज से जाना नहीं चाहते थे, उन्हें वहीं पर बनाए रखा गया है।

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