कोरबा, 25 जनवरी (वेदांत समाचार)। प्रशासन,पर्यावरण के लाख दावों के बावजूद राखड़ परिवहन में लगे ठेकेदार शहर के बीच से बेखौफ हो कर राख का परिवहन कर रहे हैं ।उधर तमाम सीसीटीवी कैमरों और लोगों के स्वास्थ्य के मुस्तैद दावों के बीच दिनदहाड़े शहर के बीच से गुजर रहे रखड़ भरे भारी वाहन जिम्मेदार अधिकारियों को नजर ही नहीं आ रहे। इस मामले में जैसे ही हमने पुलिस के जिम्मेदार अधिकारी से बात की उन्होंने मामले में जांच किए जाने की बात कहते हुवे शहर के बीच से गुजर रहे राख परिवहन पे सख्त करवाई शुरू कर दी है। उधर हसदेव ताप विद्युत गृह के ऐश यूटिलाइजेशन एंड पॉल्यूशन कंट्रोल के अधिकारी फोन उठाने से भी बच रहे हैं।
दरअसल इस पूरे खेल में चंद रुपए फेंक कर राखड़ परिवहन में लगे ठेकेदार जिम्मेदार विभागों से मिलीभगत कर, तय शुदा मार्ग की बजाय कम दूरी के चक्कर में लोगों की सेहत से खिलवाड़ में लगे है। ये पूरा मामला है, दर्री क्षेत्र में संचालित हो रहे एचटीपीएस विद्युत संयंत्र से निकलने वाली राख और उसके परिवहन का। कोयला आधारित इस विद्युत संयंत्र से विद्युत उत्पादन के बाद वेस्ट के रूप में उत्सर्जित राख को निपटान के लिए कोल इंडिया की कंपनी एसईसीएल की मानिकपुर परियोजना की खुली खदान में डंप किया जाता है। बताया जा रहा है कि एचटीपीएस प्रबंधन ने राखड़ के परिवहन के लिए तीन ठेका कंपनियों को परिवहन का ठेका दे रखा है। तीनों कंपनियों को 200 रुपए प्रति क्यूबिक मीटर की दर से राख परिवहन का ठेका मिला है। ठेके के साथ राखड़ उठाव की शर्तों में प्रशासन की तरफ से परिवहन का रूट भी तय कर दिया गया है, जो लगभग 25 से 28 किलोमीटर का है। ये तीनों कंपनियां संयंत्र से 12 और 18 चक्के के हाईवा के जरिए फ्लाई एश का परिवहन कर रही है। जानकारी के मुताबिक कंपनियां दिन भर में औसतन 25 से 28 ट्रिप रखड़ परिवहन करती है। इन्हें नियमों के तहत ध्यानचंद चौक से। रिसदी होते हुवे बरबसपुर के रास्ते मानिकपुर खदान जाकर राखड़ खदान में डंप करनी है। दूसरे तय शुदा रास्ते में रातखार से होते हुवे सर्वमंगला नहर के रास्ते उरगा होते हुवे मानिकपुर खदान जाना है। इन कंपनियों के लिए यही मार्ग तय किया गया है ताकि शहरवासियों की सेहत और यातायात व्यवस्था दुरुस्त रहे। लेकिन संयंत्र से राखड़ लेकर निकलने के बाद असल खेल शुरू होता है। इन कंपनियों की गाड़ियां सीधे दर्री से होते हुवे कोहड़िया के रास्ते सीएसईबी चौक से बुधवारी होते हुवे रिकॉर्डों रोड , मुड़ापार के रास्ते मानिकपुर खदान पहुंच रही हैं।
बड़े ही हैरानी की बात ये रही कि यातायात व्यवस्था को लेकर गंभीरता दिखाने वाले पुलिस के आला अफसर, रखड़ परिवहन को लेकर सख्त दिखने का दावा करने वाला जिला प्रशासन जिसने हाल ही में रखड़ परिवहन संबंधी शिकायतों के लिए एक हेल्प लाईन नंबर भी जारी किया है वो और जिले का लगभग विलुप्त हो चुका पर्यावरण विभाग किसी को पता ही नहीं के इनकी नाक के नीचे रखड़ का परिवहन किस तरीके से हो रहा है।
इस पूरे मामले में जब हमने अधीक्षण अभियंता ए एस ओझा से कई बार फोन पर बात करने की कोशिश की तो उनका फोन नहीं उठा जब इस मामले में हमने कोरबा सीएसपी रविन्द्र कुमार मीणा से बात की तो उन्होंने तत्काल मामले में संज्ञान लेते हुवे शहर के बीच से हो रहे रखड़ परिवहन पर कारवाई शुरू कर दी है।
उन्होंने बताया कि कुछ गाड़ियों के चालान काटे गए है। एंट्री पर रोक लगा दी गई है और मामले में जांच भी शुरू कर दी गई है। इस मामले में जो भी पुलिस कर्मी शामिल पाया जाएगा उसके विरुद्ध करवाई की जाएगी।
बहरहाल वक्ती तौर पे तो रखड़ भरे वाहनों के शहर के भीतर से गुजरने पे रोक लगी है, बस देखने वाली बात ये है कि ये प्रभाव थोड़े समय के लिए है या लंबे समय तक, साथ ही सुबह के वक्त ठेका कंपनियों पर कड़ी नजर रखने की भी जरूरत होगी ताकि शहर की फ़िज़ा साफ सुथरी बनी रहेगी।
जानकारी के अनुसार परिवहन ठेका कंपनियों को एच टीपीएस द्वारा 28 किलोमीटर के हिसाब से राखड़ परिवहन का भुगतान किया जाता है। इस तय दूरी को कम करने के लिए परिवहन कंपनियों द्वारा ये सारी गड़बड़ियां की जाती हैं, जबकि बताया तो ये जाता है कि इन गाड़ियों में जीपीएस भी लगाना है, ताकि सतत् मॉनिटरिंग होती रहे। यह भी जांच का विषय है कि एच टीपीएस द्वारा इन्हें 28 किलोमीटर की दूरी का भुगतान कैसे किया जाता है। और निविदा शर्तों के मुताबिक जीपीएस की रीडिंग क्या मायने रखते हैं।