बलौदाबाजार,11 जनवरी 2025: (वेदांत समाचार ) । पशुओं के प्रति होने वाली क्रूरताओं के लिए पशु क्रूरता अधिनियम 1960 में कई दण्डनीय प्रावधान हैं। इन प्रावधानों क़ी जानकारी अधिक से अधिक लोगों को होने से पशुओ पर होने वाले क्रूरताओं में कमी आ सकती है। संविधान के भाग 51 क (8) के अनुसार प्रत्येक भारतीय नागरिक का मौलिक कर्तव्य है कि वह सभी पशु, पक्षी, आदि प्राणी जीव के प्रति सहानुभूति रखे।
भारतीय दंड संहिता की धारा 428 एवं 429 के अनुसार किसी भी पशु जिसमें आवारा पशु भी शामिल है, को मारना या अपंग बनाना दंडनीय अपराध है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 11 (1) (प) एवं धारा 11(1)(र) के अनुसार किसी भी पालतु पशु को त्यागना अथवा उसे लावारिस छोडना दंडनीय अपराध है।पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 पशुवध गृह नियम 2001 अध्याय 4,खाद्य सुरक्षा एवं मानक नियम 2011 के अनुसार किसी भी पशु, मुर्गी या मुर्गा का वध कहीं भी न करके पशुवधगृह में ही करना चाहिए।
पशुजन्म नियंत्रण नियम 2001 के अनुसार आवारा कुत्तों को कोई भी व्यक्ति या अधिकारी पुर्नस्थापित नहीं कर सकता केवल विशेष समुह के द्वारा उन्हें पकड़कर बधियाकरण कर छोड़ा जायेगा। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 11(1) (ी) के अनुसार किसी पशु का स्वामी होते हुए उसे खाना, पानी एवं आवास देने से नकारना तथा लंबे समय तक बांधकर रखना दंडनीय अपराध है।
वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 9 के अनुसार व्यक्ति विशेष का बंदर रखना गैरकानूनी एवं दंडनीय अपराध है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 22(1) के अनुसार भालु, बंदर, शेर, चीता, तेंदुआ, सांड का प्रशिक्षण मनोरंजन के लिये करना दंडनीय अपराध है। पशुवधगृह नियम 2001 के नियम 3 के अनुसार हमारे देश में में पशुबलि अवैध है तथा यह दंडनीय अपराध है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 11(1) (उ) (पप) और धारा (11) (1) (द) के अनुसार विशेष प्रयोजन से किसी पशु को अन्य पशु के साथ लड़ाई के लिये भड़काना या भाग लेना एक दंडनीय अपराध है।
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1945 के अनुसार सौंदर्यवर्धक सामग्री का परीक्षण पशुओं में प्रतिबंधित है। वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 38) के अनुसार चिड़ियाघर में पशुओं को चिहाना, अप्रिय तरीके से खिलाना या परेशान करना और कचरा फेंकना दंडनीय अपराध है।
वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 9 के अनुसार जंगली पशु को बंधक बनाना, उनको मारकर कपडे, सामान बनाना, विष देना और शिकार के लिये चारा बनाना दंडनीय अपराध है। वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम 1972 का भाग 9 के अनुसार तोता, मैना, बुलबुल सहित किसी भी पक्षी को बंधक बनाना, पिंजरे में कैद करना, कब्जा करना और बेचना गैरकानूनी एवं दंडनीय अपराध है।
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 11 (1) (क) (पशु परिवहन नियम 2001) और मोटर वेहिकल नियम 1978, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 11 (1) (म) के अनुसार पशुओं एवं कुकुट के परिवहन का कोई भी तरीका जिससे उन्हें परेशानी, दर्द एवं पीड़ा हो एक दंडनीय अपराध है।