तुर्रीधाम की वास्तुकला का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

छत्तीसगढ़,24 दिसंबर 2024।डाँ. चौलेश्वर चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ पुरातत्व संस्कृति विभाग में आयोजित एक तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में तुर्रीधाम की वास्तुकला के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य पर एक महत्वपूर्ण शोध पत्र प्रस्तुत किया।

तुर्रीधाम का स्थान और महत्व

तुर्रीधाम छत्तीसगढ़ के नवीन सक्ति जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह स्थान प्राचीन काल से सक्ति रियासत के अधीन रहा है और इसमें ऐतिहासिक, पुरातात्विक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल हैं।

मंदिर की विशेषताएं

तुर्रीधाम में स्थित शिव मंदिर में एक प्राकृतिक शिवलिंग है, जो श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग पर प्राकृतिक जल का प्रवाह होता है, जो गंगा जल की तरह पवित्र और अलौकिक माना जाता है।

महाशिवरात्रि का महत्व

प्रत्येक महाशिवरात्रि पर, सक्ति राजा द्वारा मंदिर का प्रवेश द्वार खोला जाता है और सर्वप्रथम उनके द्वारा पूजा पाठ किया जाता है।

तुर्रीधाम के आसपास का क्षेत्र

तुर्रीधाम के पास केरवार नदी बहती है, जो दमाऊंधरा से निकलती है और बोराई नदी में मिल जाती है। यह नदी सुवाडेरा ग्राम जेठा के आसपास उष्ण नदी में समा जाती है और बाद में महानदी में बहते हुए सागर में मिल जाती है।

डाँ. चौलेश्वर चंद्राकर की सिफारिशें

डाँ. चौलेश्वर चंद्राकर ने अपने शोध आलेख में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा तुर्री धाम स्थल को पर्यटन और पुरातात्विक दृष्टि से अवलोकन करने की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने कहा है कि सक्ति नवीन जिला में यह पुरा क्षेत्र पुरातात्विक धरोहर और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शोध केंद्र के रूप में स्थापित किया जा सकता है।