छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सहकारिता विभाग के पांच IAS अधिकारियों को अवमानना नोटिस किया जारी

बिलासपुर, 12 दिसम्बर (वेदांत समाचार)। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने जिंदा पत्नी के रहते दूसरा विवाह करने के मामले में कार्रवाई न करने पर सहकारिता विभाग के पांच आईएएस अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। कोर्ट ने अधिकारियों से पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ न्यायालयीन अवमानना अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई की जाए। सहकारिता विभाग के तत्कालीन संयुक्त पंजीयक सुनील तिवारी पर आरोप है कि उन्होंने सिविल सेवा आचरण नियम, 1965 के नियम 22 का उल्लंघन किया है। उन्होंने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते बिना सरकारी अनुमति के दूसरा विवाह किया और उससे एक संतान भी उत्पन्न की।

शिकायतकर्ता विनय शुक्ला ने 25 अक्टूबर 2020 को इस मामले में शिकायत की थी। शिकायत में सुनील तिवारी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 166, 420 और 34 के तहत अपराध करने का भी आरोप लगाया गया। शिकायत में तिवारी को तत्काल निलंबित करने और विभागीय जांच करने की मांग की गई थी।

इन आईएएस अधिकारियों को जारी हुआ नोटिस –

हिमशिखर गुप्ता (तत्कालीन सचिव, सहकारिता) l
सीआर प्रसन्ना (वर्तमान सचिव, सहकारिता)।
रमेश शर्मा (तत्कालीन पंजीयक, सहकारिता)।
दीपक सोनी (तत्कालीन पंजीयक, सहकारिता)।
कुलदीप शर्मा (वर्तमान पंजीयक, सहकारिता)।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना की और जानबूझकर कार्रवाई नहीं की। उन्होंने लीगल नोटिस के माध्यम से भी अधिकारियों से जवाब मांगा। मगर, उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। अब हाई कोर्ट ने अधिकारियों से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई में उनके जवाब के आधार पर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।

छह माह में करनी थी जांच
शिकायत पर प्रभावी कार्रवाई न होने के बाद शिकायतकर्ता ने 27 जुलाई 2021 को हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने 29 सितंबर 2023 को आदेश दिया कि सुनील तिवारी के खिलाफ 6 महीने के भीतर विभागीय जांच पूरी की जाए। इसके बावजूद, विभागीय अधिकारियों ने न तो सुनील तिवारी को निलंबित किया और न ही जांच शुरू की। शिकायतकर्ता ने बार-बार निवेदन किया, लेकिन आईएएस अधिकारियों ने आदेश का पालन नहीं किया।

शिकायतकर्ता ने 12 सितंबर 2024 को अधिवक्ता संतोष कुमार पांडेय के माध्यम से पांच आईएएस अधिकारियों के खिलाफ हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की। याचिका में आरोप लगाया गया कि अधिकारियों ने हाई कोर्ट के स्पष्ट आदेश की अवज्ञा की और भारतीय न्याय प्रणाली का उल्लंघन किया। सुनवाई करते हुए जस्टिस एनके व्यास की बेंच ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा। कोर्ट ने कहा कि क्यों न न्यायालयीन अवमानना के तहत आरोप तय किए जाएं।