नई दिल्ली ,30(वेदांत समाचार ) । भारत ऐतिहासिक रूप से अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए विदेश पर बहुत अधिक निर्भर रहा है। लगभग 65-70 प्रतिशत रक्षा उपकरण आयात किए जाते थे। लेकिन, यह परिदृश्य अब बदल गया है। अब लगभग 65 प्रतिशत रक्षा उपकरण भारत में ही तैयार किए जा रहे हैं।
‘मेक इन इंडिया’ पहल के हिस्से के रूप में धनुष आर्टिलरी गन सिस्टम, एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस), मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) अर्जुन, हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस, पनडुब्बियां, फ्रिगेट, कॉरवेट और हाल ही में कमीशन किए गए आईएनएस विक्रांत जैसे प्रमुख रक्षा प्लेटफॉर्म विकसित किए गए हैं। ये भारत के रक्षा क्षेत्र की बढ़ती क्षमताओं को दर्शाते हैं।
रक्षा मंत्रालय का कहना है कि यह परिवर्तन रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के प्रति देश की उत्सुकता को दर्शाता है। यह रक्षा औद्योगिक आधार की सामर्थ्य को भी रेखांकित करता है, जिसमें 16 रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयां (डीपीएसयू), 430 से अधिक लाइसेंस प्राप्त कंपनियां और लगभग 16,000 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) शामिल हैं।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इस उत्पादन का 21 प्रतिशत हिस्सा निजी क्षेत्र से आता है, जो आत्मनिर्भरता की ओर भारत की यात्रा को बल देता है। रक्षा उपकरणों के लिए भारत कभी विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रहता था, हालांकि अब भारत अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर निर्माण को प्राथमिकता दे रहा है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान मूल्य के संदर्भ में स्वदेशी रक्षा उत्पादन में अब तक की सबसे अधिक बढ़त हासिल की है। इसका उद्देश्य रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।
सभी रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (डीपीएसयू), रक्षा उपकरण बनाने वाली अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और निजी कंपनियों के आंकड़ों के अनुसार, रक्षा उत्पादन की राशि बढ़कर 1,27,265 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है, जो 2014-15 के 46,429 करोड़ रुपये से लगभग 174 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि को दर्शाता है।
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