निमोनिया, सेप्टिक शॉक और सेप्सिस समेत अन्य बीमारी से 4095 बच्चों की मौत

0. लोग अपने बच्चों सरकारी की जगह निजी अस्पताल में लेकर जा रहे

नई दिल्ली,29 अगस्त। बच्चों के इलाज के लिए राष्ट्रीय राजधानी के जाने-माने गीता कॉलोनी स्थित चाचा नेहरू अस्पताल में पिछले पांच वर्षों में चार हजार से अधिक बच्चों की मौत हुई है। जिन बच्चों की मौत हुई है, उनकी उम्र पांच वर्ष से कम है। सबसे अधिक मौत वर्ष 2019 में हुई है। आरटीआई के जरिये बच्चों की मौत का आंकड़ा सामने आया है, जिससे हड़कंप मचा हुआ है। निमोनिया, सेप्टिक शॉक और सेप्सिस समेत अन्य बीमारी से 4095 बच्चों की मौत हुई है। इस मामले में अस्पताल प्रबंधन ने कोई प्रतिकिया नहीं दी। आरटीआई कार्यकर्ता और नोएडा निवासी अमित गुप्ता ने बताया कि विवेक विहार स्थित बेबी केयर न्यू बॉर्न अस्पताल में गत 26 मई की रात आग में झुलसने और दम घुटने से आठ बच्चों की मौत हुई थी। इस खबर को सुनकर वह दंग रह गए थे। उनके मन में सवाल उठा कि आखिर लोग अपने बच्चों सरकारी की जगह निजी अस्पताल में क्यों लेकर जा रहे हैं? उन्होंने जून में एक आरटीआई स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) में लगाई। इसमें पता चला कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में पिछले पांच वर्षों में पांच वर्ष की आयु से कम कितने मरीजों की मौत हुई है और उसकी वजह क्या रही है। डीजीएचएस ने उस आरटीआई को सभी अस्पतालों को भेज दिया। इसमें से चाचा नेहरू अस्पताल ने उन्हें आरटीआई का जवाब देते हुए इस वर्ष जून तक के आंकड़े उपलब्ध करवाए। अमित गुप्ता ने कहा कि आंकड़े चौकाने वाले हैं। चाचा नेहरू अस्पताल को बच्चों का सुपरस्पेशलिटी अस्पताल कहा जाता है। इसमें पांच वर्षों में चार हजार से अधिक बच्चों की मौत हो गई। इस आंकड़े से साफ पता चलता है कि चाचा नेहरू अस्पताल बच्चों को इलाज करने में विफल है। वह दावा भी झूठा है जिसमें कहा जा रहा है सरकार का अधिकतर बजट स्वास्थ सेवाओं पर खर्च हो रहा है। वर्ष 2020 व 2021 में देश कोरोना महामारी से जूझ रहा था। उस दौरान भी अस्पताल में 2020 में 866 व 2021 में 626 मौत हुई थी। आरोप लगाया कि पांच वर्षों में जो मौत हुई है वह ठीक से इलाज न मिलने से हुई हैं।