आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ आयुर्वेदाचार्य नाड़ीवैद्य डॉ. नागेन्द्र नारायण शर्मा ने बताया कैसा रहे भाद्रपद (भादो) मास में खान-पान एवं जीवनशैली

भादो मास में दही का न करें सेवन- डॉ.नागेन्द्र शर्मा।

भादो मास में तुलसी दल का सेवन हितकारी- डॉ.नागेन्द्र शर्मा।

कोरबा, 21 अगस्त । हिंदी मासानुसार भाद्रपद (भादो) मास का आरंभ 20 अगस्त 2024 मंगलवार से हो गया है। जो 18 सितंबर 2024 बुधवार तक रहेगा। आयुर्वेद अनुसार प्रत्येक मास में विशेष तरह के खान-पान एवं दिनचर्या का वर्णन किया गया है जिसे अपनाकर हम स्वस्थ रह सकते हैं। इसी विषय पर छत्तीसगढ़ प्रांत के ख्यातिलब्ध आयुर्वेद चिकित्सक नाड़ी वैद्य डॉ.नागेंद्र नारायण शर्मा ने भादो मास में खान-पान और जीवन शैली के विषय मे जानकारी देते हुये बताया की आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी व्यक्ती के रोग को दूर करना है। इस प्रयोजन की पूर्ति हेतु आयुर्वेद में दिनचर्या, रात्रिचर्या एवं ऋतुचर्या का विधान बताया गया है। भारतीय परंपरा में ऋतुचर्या यानी ऋतुनुसार आहार-विहार करने की परंपरा रही है। यह संस्कार हमें विरासत में मिला है। अभी भाद्रपद (भादो) मास का आरम्भ 20 अगस्त 2024 मंगलवार से हो चुका है। जो 18 सितंबर 2024 बुधवार तक रहेगा। इस अंतराल में हमें अपने आहार-विहार पर विशेष ध्यान देना चाहिये।

भाद्रपद (भादो) मास में ऋतु के अनुसार वर्षा ऋतु का समय रहता है। भाद्रपद (भादो) मास में वर्षा ऋतु होने के कारण आसपास के वातावरण मे नमी और गंदगी फैल जाती है। जिसके कारण मच्छर, मक्खियां, कीट आदि बढ़ जाते हैं और संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है।आयुर्वेदानुसार भाद्रपद (भादो) मास में नमी होने के कारण वात दोष प्रकुपित होता है। और इस समय हमारी जठराग्नि भी मंद हो जाती है जिससे हमारी पाचन शक्ति भी कमजोर हो जाती है। इन सबके कारण भूख कम लगना, अरूचि, बुखार, मलेरिया, टाइफाइड, जोड़ों के दर्द, गठिया, सूजन, खुजली, फोड़े-फुंसी, दाद, पेट में कीड़े, नेत्राभिष्यन्द (आंख आना), दस्त और अन्य रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है। साथ ही इस माह में ब्लड प्रेशर के बढ़ने की भी संभावना अत्यधिक होती है अतः ब्लड प्रेशर के रोगियों को इस माह में अपना विशेष ध्यान रखना चाहिये। इन सबसे बचाव हेतु स्नेहयुक्त भोजन, माखन, घी, पुराने अनाज जौ, गेंहू, राई, खिचड़ी, मूंग, लौकी परवल, लौकी, तरोई, अदरक, जीरा, मैथी, सरसों की कच्ची घानी का तेल आदि सुपाच्य ताजे एवं गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये। साथ ही इस मास में तुलसी दल का सेवन अवश्य करना चाहिये। जो संक्रामक रोगों से हमारी रक्षा करने मे विशेष लाभकारी होता है। भादो मास में बारिश की वजह से बीमारी फैलाने वाले कीटाणु बहुत अधिक पनपते है। अतः इस मौसम में कच्चे खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये। विशेष रूप से सलाद कच्ची सब्जियों को उबालकर ही प्रयोग करना चाहिये। भादो मास में दही का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिये इससे पाचन एवं आंतों से संबंधित तकलीफ होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। साथ ही भाद्रपद (भादो) मास में गुड़, नारियल तेल, मछली, मांस, मदिरा से भी परहेज करना चाहिये। जीवन शैली- इस मास मे तेल मालिश एवं बासी भोजन से परहेज करना चाहिये। सामान्य शीतल जल से दोनों समय स्नान करना चाहिये। तुलसी दल एवं अदरक को पानी मे उबालकर गुनगुना कर पीना चाहिये। स्कंद पुराण के अनुसार भाद्रपद (भादो) मास में दिन में एक ही समय भोजन करना चाहिये, इससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है। स्वच्छ एवं हल्के वस्त्र पहनने चाहिये, ऐसे स्थान पर शयन करना चाहिये जहां अधिक हवा और नमी न हो। भीगने से बचना चाहिये यदि भीग गये हों तो यथाशीघ्र सूखे कपड़े पहनने चाहिये, नंगे पैर, गीली मिट्टी या कीचड़ में नहीं जाना चाहिये, सीलन युक्त स्थान पर नहीं रहना चाहिए तथा बाहर से लौटने पर हांथ-पैरों को अच्छी तरह धोकर पोंछ लेना चाहिये। भाद्रपद (भादो) मास में दिन में सोना, खुले में सोना, रात्रि जागरण, अत्यधिक व्यायाम, धूप सेवन, अत्याधिक परिश्रम, अज्ञात नदी, जलाशय में स्नान नहीं करना चाहिये। तथा कीट-पतंग एवं मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का उपयोग करने के साथ साथ घर के आसपास पानी इकठ्ठा न होने दें एवं साफ़-सफाई पर विशेष ध्यान दें। इन सभी बातों को ध्यान मे रखते हुये मौसम के बदलाव के साथ ही भाद्रपद (भादो) मास में अपने खान-पान एवं जीवनशैली में जरूरी बदलाव करके, सात्विक आहार-विहार द्वारा मौसमी बीमारियों से बचाव कर स्वस्थ रहा जा सकता है।